Adbhut Ras Ki Paribhasha, अद्भुत रस की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Adbhut Ras Ki Paribhasha | अद्भुत रस की परिभाषा उदाहरण सहित हिंदी में आपको हम इसमें बताने वाले है.

adbhut Ras Ki Paribhasha-

आज हम यंहा पर आपको अद्भुत रस की परिभाषा उदाहरण सहित के बारे में बताने वाले है जो यह पढने के बाद आपको adbhut Ras से जुडी जानकारी समझ जायेंगे.

जब किसी काव्य में असमान्य घटना, कार्य, दृश्य, वस्तु आदि से उत्पन्न आश्चर्य या विस्मय का भाव उत्पन्न होता है वहा पर अद्भुत रस होता है। अर्तार्थ जहा पर इस रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है. इसके अंदर रोमांच, आँसू का आना, काँपना, गदगद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं।

Adbhut Ras Ki Paribhasha, अद्भुत रस की परिभाषा उदाहरण सहित

अद्भुत रस के प्रकार –

  1. दृष्ट,
  2. श्रुत,
  3. अनुमति एवं संकीर्तित

अद्भुत रस के भाव-

स्थायी भावआश्चर्य/विस्मय 
आलम्बन विभावआश्चर्य उत्पन्न करने वाले पदार्थ या व्यक्ति
उद्दीपन विभावअलौकिक वस्तुओं का दर्शन, श्रवण, कीर्तन इत्यादि
अनुभावदाँतो टेल उँगली दबाना, रोमांच, आँसू आना, काँपना आदि |
संचारी भावउत्सुकता, आवेग, भ्रांति, धृति, हर्ष, मोह आदि |

अद्भुत रस की परिभाषा उदाहरण सहित-

.देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया

देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड

ब्रज बछरा निज धाम करि फिरि ब्रज लखि फिरि धाम।
फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम’।।

मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को
और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन!
किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में
टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो देखा
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!
देखा, आँगन के कोने में कई नवागत
छोटी-छोटी छाता ताने खड़े हुए हैं।

अखिल भुवन चर- अचर सब
हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्गद् वचन
विकसित दृग पुलकातु॥ देखी राम जननी अकलानी।
प्रभू हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।।

आगे नदियां खरी अपार, घोड़ा कैसे उतरे,
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।

आयु सिता-सित रूप चितैचित,
स्याँम शरीर रगे रँग रातें।
‘केसव’ कॉनन ही न सुनें,
सु कै रस की रसना बिन बातें।।

दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे
दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा दें।

बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।

केशव नहि न जाई का कहिये।
देखत तब रचना विचित्र अति समुझि मनहि मन दहिये सुत की शोभा को देख मोद में फूली,
कुन्ती क्षण भर को व्यथा-वेदना भूली।
भरकर ममता-पय से निष्पलक नयन को,
वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को।

इहाँ उहाँ हुई बालक देखा ।
मति भ्रम मोर कि अवनि विशेषा।

adbhut Ras Ki Paribhasha

लक्ष्मी थी या दुर्गा वह, स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते,उसकी तलवारों के वार।

जहँ अनहोने देखिए, बचन रचन अनुरूप।
अद्भुत रस के जानिये, ये विभाव स्रु अनूप।।
बचन कम्प अरु रोम तनु, यह कहिये अनुभाव।
हर्श शक चित मोह पुनि, यह संचारी भाव।।
जेहि ठाँ नृत्य कवित्त में, व्यंग्य आचरज होय।
ताँऊ रस में जानियो, अद्भुत रस है सोय।

पद पाताल सीस अजयधामा, अपर लोक अंग-अंग विश्राम
भृकुटि बिलास भयंकर काला, नयन दिवाकर कच धन माला।

भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी।।

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निकर्ष-

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