Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit, अतिशयोक्ति अलंकार

आज हम जानेगे की Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit, अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित हिंदी में आपको हम इसमें बताने वाले है.

Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit-

जब किसी बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है, तब वह अतिश्योक्ति अलंकार अलंकार कहा जाता है।
जहाँ पर किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का वर्णन करने में लोक-समाज की सीमा अथवा मर्यादा भंग (टूट) हो जाती है, तो वहाँ पर अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit
Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit

अतिशयोक्ति अलंकार का अर्थ-

अतिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अतिशय+उक्ति | ‘अतिशय’ मतलब बहुत अधिक और ‘उक्ति‘ मतलब कह दिया.

अतिशयोक्ति अलंकार के प्रकार-

(i) रूपकातिशयोक्ति,
(ii) सम्बन्धातिशयोक्ति,
(iii) भेदकातिशयोक्ति,
(iv) चपलातिशयोक्ति,
(v) अति- क्रमातिशयोक्ति,
(vi) असम्बन्धातिशयोक्ति।

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित-


हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई , गये निसाचर भागि।

ऊपर दिए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर खाख हो गयी और सभी राक्षस भाग खड़े हुए। ये बात बिलकुल असंभव है। अतः यह अतिशयोक्ति के अंतर्गत आएगा।

देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ।।

ऊपर दिए उदाहरण में साकेत नगरी के ऊँचे भवन को आकाश की ऊँचाई छूते हुए दिखाया गया है। अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

लहरें व्योम चूमती उठतीं

ऊपर दिए उदाहरण में समुद्र की लहरों को आकाश चूमते हुए कहकर उनकी अतिशय ऊँचाई का उल्लेख अतिशयोक्ति के माध्यम से किया गया है।

बालों को खोलकर मत चला करो,
दिन में रास्ता भूल जाएगा सूरज!

ऊपर दिए उदाहरण में नायिका के काले घने केशों का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। अन्यथा बालों की घनी कालिमा के कारण सूरज रास्ता कैसे भूल सकता है?

छुअत टूट रघुपति न दोषु, मुनि बिनु काज करिअकत रोषु

ऊपर दिए उदाहरण में लक्ष्मण स्वंवर में पिनाक धनुष टूटने पर परशुराम जी को कह रहे है की घनुष टूटने में श्रीराम का कोई दोष नहीं है। यह तो उनके छूने मात्र से ही टूट गया। यहां अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है क्योंकि छूने से कभी धनुष नहीं टूटता।

जुग उरोज तेरे अली ! नित-नित अधिक बढ़ायँ ।
अब इन भुज लतिकान में, एरी ये न समायँ ।

ऊपर दिए उदाहरण में उरोजों (स्तनों) का दोनों भुजाओं के बीच में अँटने का सम्बन्ध प्रत्यक्ष है। उरोज कितने भी बड़े क्यों न हों, वे आखिर भुज मध्य में ही अँटते हैं फिर भी उनका न अँटना कहकर संम्बन्ध में असम्बन्ध प्रदर्शित किया गया है। अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।

ऊपर दिए उदाहरण में महाराणा प्रताप के सोचने से पहले ही उनके घोड़े ने वह कार्य कर दिया जोकि असंभव बात है। इसीलिए यहां अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।

आगे नदिया पड़ी अपार, धोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।

ऊपर दिए उदाहरण में सोचते ही घोड़े द्वारा नदी को पार करना अतिशयोक्ति है। इसीलिए यहां अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।

अन्य उदाहरण-

बांधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से।
मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ है हीरों से ।।

Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit
Atishyokti Alankar Ki Paribhasha Udaharan Sahit

रकत ढरा माँसू गरा हाड भए सब संख, धनि सारस होइ ररि मुई आई समेटहु पंख।

अनियारे दीरघ नयनि, किती न तरुनि समान ।
वह चितवनि औरें कछू, जिहि बस होत सुजान ।।

पत्रा ही तिथि पाइयै वा घर के चहुँ पास,
नितप्रति पून्यौईं रहे आनन ओप उजास।

वह सजीव रचना थी युग की, पल में आकर झलकी ।
नहीं समायी जड़ जंगम, छबि उनकी जो छलकी ।।

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा

मानहु बिधी तन-अच्छ छबि स्वच्छ राखिबै काज, दृग-पग पोंछन कौं करे भूषन पायंदाज।

छाले परिबे के उरनि, सकै न हाथ छुवाई |
झिझकति हिया गुलाब कै, झंझावत पाय ।।

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निकर्ष-

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