आज हम जानेगे की Chhayavad Ki Paribhasha, छायावाद की परिभाषा क्या है | Chhayawad Ka Arth Aur Paribhasha | Chhayawad Ka Abhipray Kya Hai के बारे में बताने वाले है.
Chhayavad Ki Paribhasha-
अब हम आपको छायावाद की परिभाषा किसे कहते है | छायावाद क्या है, छायावाद का अर्थ, परिभाषा और छायावादी काव्य विशेषताओं का वर्णन करिंगे –
छायावाद को हिंदी साहित्य के आधुनिक दौर में द्विवेदी युग के बाद मुक्त प्रेम, प्रकृति में मानवीय क्रियाकलापों और प्रकृति पर भावनाओं के आरोपण का रूप धारण करने वाली हिंदी कविता की धारा और अलंकारिकता के आधिपत्य में अभिव्यक्ति की नई पद्धति का उदय हुआ कला की दृष्टि से इसे छायावाद कहा जाता है।
छायावाद का इतिहास –
छायावाद के जनक का श्रेय ‘मुकुटधर पांडेय’ को दिया जाता है।
सन् 1918 से 1939 ई. तक छायावादी काव्य अपने पूर्ण यौवन के साथ हिन्दी साहित्य के मंच पर अपनी मनमोहक शैली का प्रदर्शन करता रहा। इसे ‘साहित्यिक खड़ीबोली का स्वर्णयुग’ कहा जाता है.
दो विश्वयुद्धों के बीच रचित स्वच्छंदतावाद की कविता को आम तौर पर छायावाद के रूप में नामित किया गया था।
छायावाद की परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा-
अब हम जानेगे की chhayawad kya hota hai, chhayawad ki prusthbhoomi, छायावाद के प्रवर्तक | छायावाद के प्रमुख कवि | बताने वाले है.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने – “छायावाद एक विशिष्ट शैली है, जो आलंकारिक प्रयोगों, अप्रतिष्ठित विधानों तथा अमूर्त उपमाओं से चलती है।”
महादेवी वर्मा “शयवाद प्रकृति के बीच में जीवन के लिए स्तोत्र है।”
डॉ. रामविलास शर्मा के द्वारा – छायावाद स्थूल के खिलाफ सूक्ष्म का विद्रोह नहीं, बल्कि ढीली नैतिकता, रूढ़िवाद और सामंती साम्राज्यवादी बंधनों के खिलाफ विद्रोह रहा है।
डॉ. राम कुमार वर्मा ने– छायावाद और रहस्यवाद में कोई अंतर नहीं माना है। छायावाद के बारे में उनके शब्द हैं- “आत्मा और परमात्मा की गुप्त बात रहस्यवाद है वह छायावाद है।” या “परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ती है और आत्मा की छाया परमात्मा पर पड़ती है। यह छायावाद है।
जयशंकर प्रसाद ने – “कविता के क्षेत्र में जब किसी पौराणिक युग की किसी घटना या देश-विदेश के सौन्दर्य के बाह्य वर्णन से भिन्न वेदना के आधार पर भावात्मक अभिव्यक्ति होती है, तब उसमें हिंदी में इसे छायावाद के नाम से जाना जाता है।
मुकुटधर पाण्डेय के द्वारा “यह कविता नहीं कविता की छाया है। ईश्वर के लिए प्रेम रहस्यवाद है, जैसे प्रकृति के लिए प्रेम छायावाद है।
पंडित नंददुलारे वाजपेयी: ‘छायावाद मनुष्य और प्रकृति की सूक्ष्म लेकिन व्यक्त सुंदरता में आध्यात्मिक छाया का भाव है।’
गंगा प्रसाद पाण्डेय “छायावाद किसी वस्तु में अज्ञात, जीवनदायिनी छाया की झलक प्राप्त करना या आरोपित करना है।”
गुलाबराय के द्वारा “किसी वस्तु को उपयोगिता की दृष्टि से देखने की अपेक्षा दृश्यता की सीमा में बांधकर या उसे भावुकता की कसौटी पर कस कर प्रकृति में आत्मीयता स्थापित करने की प्रवृत्ति को छायावाद कहते हैं।
शांतिप्रिया द्विवेदी: “छायावाद एक दार्शनिक अनुभव है।”
डॉ॰ नागेन्द्र ने “सूक्ष्म का स्थूल से विद्रोह” बताते हुए कहा है कि “युग की प्रबुद्ध चेतना ने बाह्य अभिव्यक्ति से निराश होकर आत्म-बद्ध आत्मनिरीक्षण साधना प्रारंभ की, जो काव्य में छायावाद है।”
डॉ. नामवर सिंह “छायावाद उस सामाजिक-सांस्कृतिक जागृति की काव्य अभिव्यक्ति है जो एक ओर विदेशी पराधीनता से मुक्ति की आवाज देती है और दूसरी ओर काव्य-परंपराओं से मुक्ति की आवाज उठाती है।”
हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा – “छायावाद व्यक्तिवाद का काव्य है, जो व्यक्ति के महत्व को स्वीकार करने और प्राप्त करने के साथ शुरू हुआ।
“छायावाद एक विशाल सांस्कृतिक चेतना का परिणाम थे। केवल पाश्चात्य प्रभाव ही नहीं था, अपितु कवियों की आन्तरिक व्याकुलता नवीन भाषा-शैली में अभिव्यक्त हुई।
डॉ देवराज के द्वारा – छायावाद कविता है, प्रकृति कविता है और प्रेम कविता है। यह आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक महान आन्दोलन के रूप में आया।
chhayawad ke char stambh kaun kaun hai-
छायावाद के चार स्तंभ इस कवियों को माना जाता है –
- महादेवी वर्मा,
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,
- जयशंकर प्रसाद
- सुमित्रानंदन पंत।
छायावादी की प्रवृत्तियां–
छायावादी काव्य की विशेषताएं – chhayawad ki visheshta hai-
व्यक्तिवाद की प्रधानता-
- छायावाद मे व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है।
- वहाँ कवि अपने सुख-दुख एवं हर्ष-शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त करता है।
सौन्दर्यानुभूति-
- यहाँ सौन्दर्य का अभिप्राय काव्य सौन्दर्य से नही, सूक्ष्म आतंरिक सौन्दर्य से है। बाह्रा सौन्दर्य की अपेक्षा आंतरिक सौन्दर्य के उद्घाटन मे उसकी दृष्टि अधिक रमती है।
- सौन्दर्योपासक कवियों ने नारी के सौन्दर्य को नाना रंगो का आवरण पहनाकर व्यक्त किया है।
श्रृंगार भावना-
- छायावादी काव्य मुख्यतया श्रृंगारी काव्य है किन्तु उसका श्रृंगार अतीन्द्रिय सूक्ष्म श्रृंगार है।
- छायावाद का श्रृंगार उपभोग की वस्तु नही, अपितु कौतुहल और विस्मय का विषत है। उसकी अभिव्यंजना मे कल्पना और सूक्ष्मता है।
प्रकृति चित्रण-
- छायावादी काव्य अपने प्रकृति-चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
- इस धारा के कवियों ने प्रकृति के माध्यम से अपने मनोभावों को अत्यंत सजीव अभिव्यक्ति प्रदान की है।
- छायावादी कवियों ने प्रकृति का मानवीकरण शैली में अत्यंत ह्रदयग्राही चित्रण किया है।
- छायावादी कवियों ने प्रकृति के कोमल और कठोर रूपों के अत्यंत ह्रदयग्राही चित्रण किया है।
- छायावादी कवियों ने प्रकृति के कोमल और कठोर रूपों के अत्यंत प्रभावी और सजीव चित्र उतारे हैं।
मानवतावाद-
- छायावादी कविता में मानवता के प्रति विशेष आग्रह दृष्टिगोचर होता है।
- रामकृष्ण एवं विवेकानन्द द्वारा प्रचलित मानवतावाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रचलित विश्व-बन्धुत्व की
- भावना तथा महात्मा गाँधी द्वारा प्रचलित मानवतावाद-इन सबका प्रभाव छायावादी कविताओं में देखा जा सकता है।
- प्रसाद में मानव मात्र की समानता, विश्व-बन्धुत्व, करूण के भाव सर्वत्र व्याप्त हैं।
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FAQ-
छायावाद क्या है परिभाषित करें?
किसी वस्तु को उपयोगिता की दृष्टि से देखने की अपेक्षा दृश्यता की सीमा में बांधकर या उसे भावुकता की कसौटी पर कस कर प्रकृति में आत्मीयता स्थापित करने की प्रवृत्ति को छायावाद कहते हैं।
छायावाद के जनक कौन माने जाते हैं?
छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की
छायावाद की पहली रचना कौन सी है?
छायावाद की पहली रचना झरना छायावाद की प्रथम रचना मानी जाती है
छायावाद के चार स्तंभ कौन कौन से हैं?
छायावाद के चार स्तंभ महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत।
chhayawad ki pahli rachna कौनसी है-
“झरना” छायावाद की प्रथम रचना मानी जाती है
छायावादी युग का दूसरा नाम क्या है?
छायावादी युग का दूसरा नाम साहित्यिक खड़ी बोली का स्वर्ण युग कहा जाता है ।
छायावाद के प्रवर्तक का नाम क्या है?
छायावाद नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
छायावाद को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?
छायावाद अपनी रचनात्मक उपलब्धियों के कारण आधुनिक हिंदी कविता का स्वर्णयुग गौरव सिद्ध होता है। अपनी अंतरदृष्टि, अभिव्यंजना, भाव सघनता, दार्शनिकता, माधुर्य, ओज का नवोन्मेष और अनुभूति प्रवणता आदि से छायावाद आधुनिक हिंदी कविता में अद्वितीय है।
छायावादोत्तर काल के लेखक कौन है?
छायावादोत्तर काल के लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, हरिशंकर परेसाई, यशपाल, रामवृक्ष बेनीपुरी, धर्मवीर भारती, विद्यानिवास मिश्र, कमलेश्वर आदि
छायावाद की समय सीमा क्या है?
छायावाद की समय सीमा ई. स. 1918 से 1936 तक की प्रमुख युगवाणी रही।
छायावादी युग की पत्रिका कौन सी है?
छायावादी युग की पत्रिका सरस्वती‘ में ‘छायावाद’ का प्रथम उल्लेख जून, १९२१ ई० के अंक में मिलता है।
निकर्ष-
- जैसा की आज हमने आपको Chhayavad Ki Paribhasha, छायावाद की परिभाषा जानकारी के बारे में आपको बताया है.
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