आज हम आपको Durmil Chhand Ki Paribhasha In Hindi, दुर्मिल छंद की परिभाषा, Durmil Chhand Ka Udaharan, दुर्मिल छंद किसे कहते है के बारे में आपको बताने वाले है.
अब आपको यंहा पर हम Durmil chhand definition in hindi, दुर्मिल छंद के उदाहरण, Durmil Chhand In Hindi बताने वाले है.
दुर्मिल छंद क्या है? (Durmil Chhand in Hindi)
दुर्मिल छंद हिंदी काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण वर्णिक छंद है जो अपनी विशिष्ट संरचना और लय के लिए जाना जाता है। यह छंद मुख्य रूप से भक्ति काव्य और दोहावली शैली में प्रयोग किया जाता है।
दुर्मिल छंद की परिभाषा (Durmil Chhand Ki Paribhasha)
दुर्मिल छंद एक वर्णिक छंद है जिसमें:
- चार चरण (पंक्तियाँ) होते हैं
- प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं (कुल 24 वर्ण)
- 8 मात्राओं के बाद यति (विराम) होता है
- छंद का तुकांत (अंतिम शब्दों की समानता) होता है
- वर्णों का क्रम “लघु-लघु-गुरु” (I I S) होता है
दुर्मिल छंद की विशेषताएँ
- वर्ण व्यवस्था: प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं जो “लघु-लघु-गुरु” (I I S) के क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
- मात्रा विभाजन: 8 मात्राओं के बाद विराम (यति) होता है।
- तुकांतता: सभी चारों चरणों के अंत में समान तुक होता है।
- भाव व्यंजना: इसमें भक्ति, श्रृंगार और नीति संबंधी भावों की अभिव्यक्ति सुंदर ढंग से होती है।
दुर्मिल छंद के उदाहरण (Durmil Chhand Ke Udaharan)
उदाहरण 1:
भज नंद यशोमति के सुत को, मुरलीधर पूरण काम मिले।
मनमोहन कृष्ण दयामय को, जिसकी कृपा अविराम मिले।
जिसकी करुणा पल में हर ले, सब मोह निशा सुख धाम मिले।
तर कंस गया जब पाप मयी, तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।
व्याख्या:
इस उदाहरण में प्रत्येक पंक्ति में 12 वर्ण हैं और “I I S” का क्रम स्पष्ट दिखाई देता है। सभी चरणों का अंत “मिले” शब्द से हो रहा है जो तुकांत को दर्शाता है।
उदाहरण 2:
सखि! नील नभ सर में उतरा, यह हंस अहा तरता-तरता
अब तारक मौक्तिक शेष नहीं, निकला जिनको चरता-चरता
अपने हिम-बिंदु बचे तब भी, चलता उनको धरता-धरता
गड़ जाएँ न कंटक भूतल के, कर डाल रहा डरता-डरता
उदाहरण 3 (भक्ति रस):
प्रभु नाम जपें सिय-राम जपें, बजरंगबली हनुमान सदा।
हरि-कीर्तन में मद-मस्त रहें, सुनते हरि का गुण-गान सदा।
प्रभु राम सिया हिय में बसते, करते प्रभु का वह ध्यान सदा।
निज-भक्तन की सब पीर हरें, अधरों पर है मुसकान सदा।
उदाहरण 4: देशभक्ति
कहै किसको यह देश सुदेश, समुन्नत है सबके मन भारत। समझे सुरलोक समान उसे, उनका अनुमान असंगत भारत। कवि कोविद-वृन्द बखान रहे, सबका अनुभूत यही मत भारत। उपमान विहीन रचा विधि ने, बस भारत के सम भारत भारत।
विशेष:
- “भारत” शब्द की पुनरावृत्ति
- देशभक्ति की भावना
- 12 वर्णों का कड़ाई से पालन
उदाहरण 5: गणेश वंदना
गणनाथ गजानन को सुमिरो, हरि मन्दिर में नित शीश धरो। हरिनाम जपो सियराम जपो, नँदलाल जपो भव पार करो। वृषभानु-लली सँग मोहन की, छवि नित्य लखो भव-सिंधु तरो। शिव शम्भु भजो जप-ध्यान करो, मन आँगन में नित पुण्य भरो।
तकनीकी पहलू:
- सभी पंक्तियाँ 12 वर्णों की
- “धरो”, “करो” आदि से तुक
- धार्मिक भावना प्रधान
उदाहरण 6: जीवन दर्शन :-
सब जाति फटी दुख की दुपटी, कपटी न रहै जहँ एक घटी निपटी रुचि मीचु घटी हूं घटी, जग जीव जतीन कि छूटि तटी अघ ओध कि बेरि कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान वटी चहु ओरनि नाचति मुक्ति नटी, गुन घ्रजटी बन पंचवटी
भाषाई विशेषता:
- ब्रजभाषा का प्रयोग
- दार्शनिक विचार
- जटिल शब्दावली
उदाहरण 7: प्रार्थना:-
मन के तम को अब दूर करो, विनती करता कर जोड़ हरे। इस जीवन में अब आस यही, कर दो मन की सब त्रास परे। प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे। हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।
भाव पक्ष:
- आध्यात्मिक प्रार्थना
- “हरे”, “परे” से तुक
- गहन भावाभिव्यक्ति
दुर्मिल छंद की रचना कैसे करें?
दुर्मिल छंद लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें:
- प्रत्येक पंक्ति में 12 वर्ण रखें
- वर्णों का क्रम “लघु-लघु-गुरु” (I I S) बनाए रखें
- सभी पंक्तियों का अंत समान शब्द/तुक से करें
- 8 मात्राओं के बाद विराम का ध्यान रखें
- भाव की गहराई और सरलता बनाए रखें
दुर्मिल छंद का महत्व :-
दुर्मिल छंद हिंदी काव्य परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि:
- यह जटिल भावों को सरल ढंग से व्यक्त करता है
- इसकी लय और संगीतात्मकता श्रोताओं को आकर्षित करती है
- भक्ति और श्रृंगार दोनों रसों के लिए उपयुक्त है
- स्मरणीय और गेय होने के कारण लोकप्रिय है.
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न :-
Q: दुर्मिल छंद में कुल कितने वर्ण होते हैं?
दुर्मिल छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं और पूरे छंद में कुल 24 वर्ण होते हैं।
Q: दुर्मिल छंद में यति कहाँ होती है?
दुर्मिल छंद में 8 वर्णों के बाद यति (विराम) होता है।
Q: दुर्मिल छंद किस प्रकार का छंद है?
दुर्मिल छंद एक वर्णिक छंद है जो मात्राओं के स्थान पर वर्णों की संख्या और क्रम पर आधारित होता है।
Q: क्या दुर्मिल छंद में तुकांत अनिवार्य है?
हाँ, दुर्मिल छंद में सभी चारों चरणों का तुकांत (अंत में समान ध्वनि) होना आवश्यक
निष्कर्ष
दुर्मिल छंद हिंदी काव्य की एक सुंदर विधा है जो अपनी नियमबद्ध संरचना और मधुर लय के कारण पाठकों और श्रोताओं को समान रूप से आकर्षित करती है। इस छंद में भक्ति, श्रृंगार और नीति संबंधी विषयों को बड़े ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। छंदशास्त्र के ज्ञान के साथ-साथ भाव की गहराई इस छंद को और भी प्रभावशाली बना देती है।