Durmil Chhand Ki Paribhasha, दुर्मिल छंद की परिभाषा, उदाहरण

आज हम आपको Durmil Chhand Ki Paribhasha In Hindi, दुर्मिल छंद की परिभाषा, Durmil Chhand Ka Udaharan, दुर्मिल छंद किसे कहते है के बारे में आपको बताने वाले है.

अब आपको यंहा पर हम Durmil chhand definition in hindi, दुर्मिल छंद के उदाहरण, Durmil Chhand In Hindi बताने वाले है-

Durmil Chhand Ki Paribhasha

Durmil Chhand Ki Paribhasha-

दुर्मिल छंद एक वर्णिक छंद है जिसके चार चरण होते है और सभी चारों चरण का तुकांतता होता है इस छंद में कुल 24 वर्ण होते है जिसमे दो लघु वर्ण और एक गुरु (112) 8 वर्ण होते है और प्रत्येक चरण के 12 वर्ण पर यति होती है उसे दुर्मिल छंद कहते है.

उदाहरण सहित व्याख्या-

I I S I I S I I S I I S, I I S I I S I I S I I S = 12+12 = 24 वर्ण
भज नदं यशोमति के सुत को, मुरलीधर पूरण काम मिले।
मनमोहन कृष्ण दयामय को, जिस की किरपा अविराम मिले।
जिस की करुणा पल में हरले, सब मोह निशा सुख धाम मिले।
तर कंस गया जब पाप मयी, तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।

व्याख्या- ऊपर दिए उदाहरण में प्रथम चरण में कुल 24 वर्ण है जिसमे 12 वर्ण पर यति है और उपर्युक्त चरण में लघु लघु और गुरु वर्ण की आवृति हुयी है इसीलिए यह दुर्मिल छंद का उदाहरण है.

Durmil Chhand Ka Udaharan

दुर्मिल छंद के उदाहरण- Durmil chhand Ka Udaharan

सखि ! नीलनभः सर में उतरा यह हंस अहा तरता-तरता
अब तारक मौक्तिक शेष नहीं, निकला जिनको चरता-चरता
अपने हिम-बिन्दु बचे तब भी, चलता उनको धरता-धरता
गड़ जायँ न कंटक भूतल के, कर डाल रहा डरता-डरता

प्रभु नाम जपें सिय-राम जपें,बजरंग-बली हनुमान सदा।
हरि-कीर्तन में मद-मस्त रहें ,सुनते हरि का गुण-गान सदा।
प्रभु राम सिया हिय में बसते,करते प्रभु का वह ध्यान सदा।
निज-भक्तन की सब पीर हरें,अधरों पर है मुसकान सदा।

इसके अनुरूप कहै किसको, यह देश सुदेश समुन्नत है।
समझे सुरलोक समान उसे, उनका अनुमान असंगत है।
कवि कोविद-वृन्द बखान रहे, सबका अनुभूत यही मत है।
उपमान विहीन रचा विधि ने, बस भारत के सम भारत है।

गणनाथ गजानन को सुमिरो,हरि मन्दिर में नित शीश धरो।
हरिनाम जपो सियराम जपो,नँदलाल जपो भव पार करो।
वृषभानु-लली सँग मोहन की,छवि नित्य लखो भव-सिंधु तरो।
शिव शम्भु भजो जप-ध्यान करो,मन आँगन में नित पुण्य भरो।

सब जाति फटी दुख की दुपटी, कपटी न रहै जहँ एक घटी
निपटी रुचि मीचु घटी हूं घटी, जग जीव जतीन कि छूटि तटी
अघ ओध कि बेरि कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान वटी
चहु ओरनि नाचति मुक्ति नटी गुन घ्रजटी बन पंचवटी

मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।

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निकर्ष-

जैसा की आज हमने आपको Durmil Chhand Ki Paribhasha, दुर्मिल छंद की परिभाषा और उदाहरण के बारे में आपको बताया है.

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