आज हम जानेगे की Harigitika Chhand Ki Paribhasha In Hindi, हरिगीतिका छंद की परिभाषा उदाहरण सहित, हरिगीतिका छंद का अर्थ, हरिगीतिका छंद क्या है, हरिगीतिका छंद किसे कहते है आपको हम इसमें बताने वाले है.
अब आपको यंहा पर हम Harigitika chhand definition in hindi, हरिगीतिका छंद के उदाहरण, Harigitika Chhand In Hindi बताने वाले है-
Harigitika Chhand Ki Paribhasha-
हरिगीतिका छंद सम मात्रिक छंद है इस छंद की प्रत्येक पंक्ति में 28 मात्राएं होती हैं जिनमे 16 और 12 मात्राओ पर यति होती है प्रत्येक पंक्ति के अंत में लघु और गुरु अवश्य होता है यानी प्रत्येक चरण के अन्त में ‘रगण’ (S।, S) आना आवश्यक है उसे हरिगीतिक छंद कहते है.
हरिगीतिका छंद अधिकतर ईश-वंदना में प्रयोग किया जाता है |
गीतिका छंद आरंभ में दो मात्रा जोड़ने से हरिगीतिका छंद बनता है. क्योकि गीतिका छंद में 26 मात्राए होती है. हरिगीतिका’ के चारों पदों में से कम से कम दो-दो पदों में ‘तुक’ मिलना चाहिए।
Harigitika Chhand Ka Udaharan-
उदाहरण-1
लघु लागि विधि की निपुणता, अवलोकी पुर सोभा सही
| | S | | | S | | | S, | | S S | | S S | S = 28 मात्राएं
वन बाघ कूप तडाग सरिता, सुभग सब सक को कही
| | S | S | | S | | | S, | | | | | | | S | S = 28 मात्राएं
मंगल विपुल तोरण पताका, केतु गृह गृह सोहहीं
वनिता पुरुष सुन्दर चतुर छवि, देखि मुनि मन मोहही
स्पष्टीकरण- इस उदाहरण की प्रत्येक पंक्ति में 28 मात्राएं हैं जिसमे 16 मात्राओ और 12 मात्राओं पर यति है अतः इस उदाहरण में हरिगीतका छंद है.
उदाहरण- 2
संसार की समरस्थली में, धीरता को धारण करो
S S | S | | S | S S, S | S S S | | | S = 28 मात्राएं
चलते हुए निज इष्ट पथ पर. संकटों से मत डरो
| | S | S | | S | | | | |, S | S S | | | S = 28 मात्राएं
जीते हुए मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो
वर वीर बन कर आप अपनी, विध्न बाधाएं हरो
स्पष्टीकरण- इस उदाहरण की प्रत्येक पंक्ति में 28 मात्राएं हैं जिसमे 16 मात्राओ और 12 मात्राओं पर यति है अतः इस उदाहरण में हरिगीतका छंद है.
उदाहरण-3
प्रभु गोद जिसकी वह यशोमति, दे रहे हरि मान हैं ।
गोपाल बैठे आधुनिक रथ, पर सहित सम्मान हैं ॥
मुरली अधर धर श्याम सुन्दर, जब लगाते तान हैं ।
सुनकर मधुर धुन भावना में, बह रहे रसखान हैं॥
उदाहरण- 4
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती।
भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।
उदाहरण- 5
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम ॥
कंदर्प अगणित अमित छवि नव, नील नीरज सुन्दरम ।
पट्पीत मानहु तडित रुचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम ॥
उदाहरण- 6
कोई ना मेरे राज्य में भूखा तथा नंगा रहे
सुख का हिमालय हो खड़ा, सुख चैन की गंगा बहे
उदाहरण- 7
मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा ।
नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः ।
स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
उदाहरण- 8
है तात, है मातुल, जन्हाँ हो, है प्रणाम तुम्हे वहीँ |
अभिमन्यु का इस भांति मरना, भूल मत जाना कहीं | |
उदाहरण- 9
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे, शत्रु रण मे म्रत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे, हो गये उठकर खड़े।।
उदाहरण- 10
मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।
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निकर्ष-
जैसा की आज हमने आपको Harigitika Chhand Ki Paribhasha, हरिगीतिका छंद की परिभाषा, Harigitika Chhand Ke udaharan जानकारी के बारे में आपको बताया है.
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