Karun Ras Ki Paribhasha, करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Karun Ras Ki Paribhasha, करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है | Karun Ras Definition | Karun Ras Kya Hai आपको हम बताने वाले है.

Karun Ras Ki Paribhasha-

अब आपको हम यंहा पर Karun Ras Ki Paribhasha, करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है इसके बारे में डिटेल में बताने वाले है –

जब किसी काव्य या रचना को पढ़कर या सुनकर हमें दुख या शोक की भावना की अनुभूति होती है
इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है तो वह करुण रस उत्पन्न करता है.

किसी प्रिय व्यक्ति या प्रिय वस्तु के बिछड़ जाने या , अनिष्ट होने की शंका से या विनाश से उत्पन्न होने वाला दुःख की स्थिति और जहाँ पर पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है.

करुण रस की परिभाषा विद्वानों द्वारा-

धनंजय, विश्वनाथ आदि संस्कृत आचार्यों ने करुण रस के विविध कारणों को समझाते हुए ‘दृष्ट-नाश’ और ‘अनिष्ट-आप्ति’ इन दो संज्ञाओं में सम्बन्ध किया है जिनका वर्णन ‘नाट्यशास्त्र’ से मिलता है-

धनंजय ने परिभाषा देते हुए :- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्तौ शोकात्मा करुणोऽनुतम्’

विश्वनाथ ने परिभाषा देते हुए :- ‘इष्टनाशादनिष्टाप्ते: करुणाख्यो रसो भवेत’।

चिन्तामणि के अनुसार इसकी परिभाषा –

‘इष्टनाश कि अनिष्ट की, आगम ते जो होइ।
दु:ख सोक थाई जहाँ, भाव करुन सोइ’ ।

देव के द्वारा –

‘विनठे ईठ अनीठ सुनि, मन में उपजत सोग।
आसा छूटे चार विधि, करुण बखानत लोग’।

कुलपति मिश्र के द्वारा ‘रसरहस्य’ में भरतमुनि के नाट्य के अनुरूप करुण रस के विभावों का उल्लेख किया है ।

केशवदास के द्वारा ‘रसिकप्रिया’ में ‘प्रिय के बिप्रिय करन’ को ही करुण रस की उत्पत्ति का कारण माना है।

करुण रस के अवयव-

  • स्थाई भाव – शोक ।
  • आलंबन (विभाव) – विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु।
  • उद्दीपन (विभाव) – आलम्बन का दाहकर्म, इष्ट के गुण तथा उससे सम्बंधित वस्तुए एवं इष्ट के चित्र का वर्णन
  • अनुभाव – भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना, रुदन, प्रलाप, मूर्च्छा, दैवनिंदा, कम्प आदि ।
  • संचारी भाव – निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि ।

करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित- karun ras ka example

अब हम आपको करुण रस के उदाहरण स्पष्टीकरण सहित, करुण रस के 10 उदाहरण के बारे में बताने वाले है-

उदाहरण – 1

शोक विकल सब रोवहिं रानी ।
रूप सीलु सबु देखु बखानी ।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा ।
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा ।।

( यहां पर रानियों के रोने और विलाप करने का बोध हो रहा है अतः यहां पर करुण रस विद्यमान है।)

उदाहरण – 2

हुआ न यह भी भाग्य अभागा
किस पर विकल गर्व यह जागा
रहे स्मरण ही आते
सखि वे मुझसे कहकर जाते

उदाहरण – 3

अभी तो मुकुट बंधा था माथ
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल

उदाहरण – 4

ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी
जब घायल हुआ हिमालय, खतरे में पड़ी आजादी।
जब तक थी सांस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी।

(यहाँ पर देश के वीर जवानों के बलिदानों का मार्मिक स्मरण किया जा रहा है अतः यह करुण रस है।)

उदाहरण – 5

सीता गई तुम भी चले मै भी न जिऊंगा यहाँ
सुग्रीव बोले साथ में सब (जायेंगे) जाएँगे वानर वहाँ

उदाहरण – 6

दुःख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ, आज जो नहीं कहीं

उदाहरण 7-

” अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल॥
हाय रुक गया यहीं संसार, बना सिन्दूर अनल अंगार।
वातहत लतिका यह सुकुमार, पड़ी है छिन्नाधार! ”

उदाहरण 8-

” हा! वृद्धा के अतुल धन हा! वृद्धता के सहारे! हा!
प्राणों के परम प्रिय हा! एक मेरे दुलारे! ”

Karun Ras Ki Paribhasha
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करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित
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निकर्ष-

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