आज हम आपको Parivar Ki Paribhasha, परिवार की परिभाषा, परिवार के प्रकार, परिवार की विशेषताएं और परिवार के कार्य के बारे में बताने वाले है.
अब हम आपको परिवार का अर्थ, परिवार किसे कहते है, परिवार क्या होता है, Definition Of Parivar in hindi के वारे में आपको बताने वाले है.
परिवार का अर्थ-
परिवार शब्द अंग्रेजी के ‘Family’ शब्द के नाम से जानते है Family शब्द की उत्पत्ति लेटिन के ‘Famulus’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ माता-पिता, बच्चे, नौकर व दास से निर्मित समूह से होता है.
Parivar Ki Paribhasha-
व्यक्तियों द्वारा अपने संबंधो को एक सूत्र में बांधके रखना ही परिवार का निर्माण करती है अर्ताथ व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे को सरंक्षित व सुरक्षित रखने हेतु बनाया गया रिश्तों का जाल भी परिवार कहलाता है.
परिवार की परिभाषा विद्वानों द्वारा-
जोन्स के अनुसार – परिवार यौन सम्बन्धों पर आधारित एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिसमें सन्तानोत्पत्ति होती है एवं उनका पालन-पोषण होता है.
क्सेयर के द्वारा – परिवार को हम संबंधों की वह व्यवस्था है जो माता-पिता और उसकी संतानों के मध्य पायी जाती है।
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार- परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा बनाया गया एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।
डी. एन. मजूमदार के अनुसार- परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो एक ही छत के नीचे रहते है, रक्त से संबंधित होते है और स्थान, स्वार्थ और पारस्परिक आदान-प्रदान करते है।
बीसेंज और बीजेंस के द्वारा – परिवार की परिभाषा मे एक बच्चे सहित स्त्री और उनकी देखभाल के लिए पुरूष को ले सकते है।
डॉ. मार्डक के अनुसार- परिवार एक ऐसा जनसमूह है, जिसके लक्षण सामान्य निवास, आर्थिक सहयोग और जनन है।
मैकाईवर एवं पेज के द्वारा- परिवार एक ऐसा समूह है जो यौन सम्बन्धों के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है। यह इतना छोटा एवं स्थायी है कि इसमे सन्तानोत्पत्ति एवं उनका पालन-पोषण किया जा सकता है।
लूसीमेयर के द्वारा– परिवार एक गृहस्थ समूह है, जिसमें माता-पिता और सन्तान साथ-साथ रहते हैं और जीवन निर्वहन करते है.
ऑगबर्न एवं निकाॅफ ने कहा है की – जब हम परिवार के बारे मे सोचते है तो हमारे सामने एक स्थायी समिति का चित्र आता है जिसमे पति एवं अपने बच्चों के साथ या बिना बच्चों के रहते या एक ऐसे अकेले पुरूष या अकेली स्त्री की कल्पना आती है, जो अपने बच्चों के साथ रहते है।
इलियट एवं मेरिल के अनुसार – परिवार को पति पत्नी तथा उनके बच्चों की एक जैविकीय सामाजिक इकाई होती है.
परिवार के प्रकार –
परिवार दो प्रकार का होता है –
प्राथमिक परिवार-
जिस परिवार मे सिर्फ माता पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे होते है उस परिवार को प्रथामिक परिवार कहते है.
विस्तृत परीवार या संयुक्त परिवार –
जिस परिवार मे एक वंश के समस्त भाई, उनकी पत्नियां, लड़के- बच्चे, उनकी बहने तथा माता-पिता आदि रहते है और जिस घर का एक बुजुर्ग व्यक्ति मुखिया होता है। उस परिवार को विस्तृत परीवार कहते है।
परिवार की विशेषताएँ-
सार्वभौमिकता – सामाजिक इकाइयों में परिवार सबसे मौलिक एवं छोटी इकाई हैं। इसलिए यह सामाजिक विकास के सभी स्तरों में सभी समाजों में पायी गई है।
असीमित उत्तरदायित्व – परिवार समाज की प्रारम्भिक इकाई है, जिसमें व्यक्ति पैदा होता है, बड़ा होता है तथा मृत्यु को प्राप्त करता है, इसलिए परिवार के सदस्यों के असीमित उत्तरदायित्व होते हैं.
रचनात्मक प्रभाव – रचनात्मक का अर्थ सामाजिक सन्तुलन एवं विकास में सहायक है, परिवार के छोटे बच्चों पर सदस्यों का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण बच्चा परिवार में विद्यमान सांस्कृतिक गुणों को अपनाता है और अपना सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण करता है.
सामाजिक नियन्त्रण – प्रत्येक समाज अपने लिए जीवन के कुछ मूल्यों का विकास करती है, जो व्यक्ति एवं परिवार को नियमित करने का प्रयास करती है इसीलिए परिवार पर समाज का नियंत्रण होता है.
छोटा आकार – समाज में परिवार की सदस्य संख्या अधिक नहीं होती, व्यक्तियों की मृत्यु एवं परिवार विभाजन भी परिवार के आकार के छोटे होने का कारण है इसलिए आकार छोटा होता है।
सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थिति – सामाजिक संरचना मूलत: अनेक परिवारों के योग से ही बनता है।
भावात्मक आधार – परिवार के सभी सदस्य भावात्मक आधार पर एक-दूसरे से बन्धे होते हैं, इन सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है और सम्बन्धों को अधिक स्थायित्व एवं दृढ़ता प्रदान करती है।
परिवार के कार्य –
यौन इच्छाओं की पूर्ति-
परिवार यौन संबंधी इच्छाओं की पूर्ति का महत्वपूर्ण साधन है परिवार व्यवस्थित रूप से प्रत्येक व्यक्ति को विवाह के द्वारा यौन संबंधो को स्थापित करने की स्वीकृति प्रदान करता है और इनका उल्लंघन करने पर दंड भी देता है।
संतानोत्पत्ति
संतानोत्पत्ति परिवार का दूसरा प्रमुख प् कार्य है यद्यपि यह कार्य परिवार के बाहर भी संभव है लेकिन वे संताने अवैध होती है ऐसी संतानो का समाज तिरस्कार करता है। परिवार द्वारा किये जाने वाले संतानोत्पत्ति के कार्य से ही समाज का अस्तित्व एवं निरंतरता बनी रहती है परिवार संतानो को वैधता प्रदान करता है।
सदस्यों की शारीरिक रक्षा
परिवार अपने सदस्यों की शारीरिक रक्षा का कार्य भी संपन्न करता है पालन-पोषण से लेकर बच्चे को सामाजिक प्राणी बनने तक संपूर्ण दायित्व परिवार द्वारा वहन किये जाते है।
मनोवैज्ञानिक कार्य
व्यक्ति को शारीरिक सुरक्षा ही पर्याप्त नही होती बल्कि मानसिक सुरक्षा का भी होना आवश्यक है तभी व्यक्ति समाज मे अच्छी तरह रह सकता है परिवार अपने सदस्यों को मानसिक संतुष्टि, शांति व सुरक्षा प्रदान करता है।
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निकर्ष-
जैसा की आज हमने Parivar Ki Paribhasha, परिवार की परिभाषा के बारे में आपको बताया है.
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