Ras Ki Paribhasha, रस की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Ras Ki Paribhasha, रस की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है और इससे जुडी जानकारी हिंदी में आपको हम इसमें बताने वाले है.

Ras Ki Paribhasha, रस की परिभाषा-

रस का अर्थ ‘आनंद’ होता है यानि किसी काव्य को पढ़ने अथवा सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।

संस्कृत में कहा गया है कि “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस को अंग्रेजी भाषा में ‘Sentiments’ कहते है।

रस’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘रस्’ धातु में अच्’ प्रत्यय के योग से हुई है अर्थात ‘रस्+अच् = रस’ होता है।

Ras Ki Paribhasha, रस की परिभाषा उदाहरण सहित

Ras Ki Paribhasha विद्वानों के द्वारा

आचार्य धनंजय के अनुसार – विभाव, अनुभाव, सात्त्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही ‘रस’ है।

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार -विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा।
रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥

उपर दिए श्लोक का अर्थ:- जब हृदय का स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग प्राप्त कर लेता है, तो ‘रस’ रूप में निष्पन्न हो जाता है।

डॉ. विश्वम्भर नाथ के द्वारा- डॉ. विश्वम्भर नाथ के अनुसार:- भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही ‘रस’ है।

साहित्य दर्पण’ में काव्य की व्याख्या में लिखा है – ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यं’ अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य होता है।

आचार्य श्याम सुंदर दास के अनुसार – स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा-:- जिस भांति आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी भांति हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।

भरत मुनि के अनुसार –“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगद्रसनिष्पत्ति” अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

अत: भरत मुनि के ‘रस तत्त्व’ का आधारभूत विषय नाट्य में ‘रस’ की निष्पत्ति है।

भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में 8 रस होते है

रस के अंग –

रस के प्रमुख 4 चार अंग (या अवयव) हैं जो इस प्रकार हैं।

  1. स्थायी भाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव ।

रस के प्रकार (Ras ke Prakar)-

रस के मुख्य रूप से नौ 9 प्रकार के होते हैं, लेकिन आचार्यों ने दो और रस ‘वात्सल्य रस’ व ‘भक्ति रस’ को भी स्वीकार कर लिया गया है।

वर्तमान समय में कुल ग्यारह (11) रस हैं जो इस प्रकार है –

क्रम संख्यारस के प्रकारस्थायी भाव
1.श्रृंगार रसरति
2.करुण रसशोक
3.हास्य रसहास
4.वीर रसउत्साह
5.रौद्र रसक्रोध
6.भयानक रसभय
7.अद्भुत रसविस्मय (आश्चर्य)
8.शांत रसनिर्वेद
9.वीभत्स रसजुगुप्सा
10.वात्सल्य रसवत्सल्य रति
11.भक्ति रसअनुराग (भगवत् विषयक रति)

रस की परिभाषा उदाहरण सहित-

Ras Ki Paribhasha
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निकर्ष-

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