Rupak Alankar Ki Paribhasha, रूपक अलंकार की परिभाषा उदाहारण सहित

आज हम जानेगे की rupak alankar ki paribhasha, रूपक अलंकार की परिभाषा उदाहारण सहित | रूपक अलंकार का अर्थ | रूपक अलंकार के उदाहरण के बारे में बताने वाले है.

rupak alankar ki paribhasha, रूपक अलंकार की परिभाषा-

अब आपको हम रूपक अलंकार किसे कहते है | रूपक अलंकार क्या है | Rupak alankar definition in hindi | rupak alankar ke niyam | Rupak alankar ke udaharan के बारे में बताने वाले है.

जिस अलंकार में उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे तब वहाँ रूपक अलंकार होता है।
जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ इस प्रकार रखा जाए, कि दोनों में कोई भेद न रहे। अर्थात उपमेय उपमान का रुप धारण कर लेता है।
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।

जैसे – ’चरन-सरोज पखारन लागा।’
यहाँ ’चरणों’ (उपमेय) में ’सरोज’ (उपमान) का आरोप होने से रूपक अलंकार है।

rupak alankar ki paribhasha udaharan sahit-

rupak alankar ki paribhasha udaharan sahit
rupak alankar ki paribhasha udaharan sahit

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

अर्थ – उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।

प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।

अर्थ –यहाँ यौवन में प्रभात का वक्ष में सर का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहां हम देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है।

बीती विभावरी जाग री,
अम्बर-पनघट में डुबो रही,
तारा-घट उषा-नागरी।

अर्थ –- उपर्युक्त दोहे में ‘उषा में नागरी’, ‘अम्बर में पनघट’ और ‘तारा में घाट’ का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहाँ पर उपमान और उपमेय में अभिन्नता दिखाई दे रही है।

उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।

अर्थ – जब किसी पद का भावार्थ ग्रहण करने पर दो पदों के बीच में ’रूपी’ शब्द की प्राप्ति होती है तो वहाँ रूपक अलंकार माना जाता है।

शशि-मुख पर घूँघट डाले अंचल में दीप छिपाये।

अर्थ – मुख पर शशि यानी चन्द्रमा का आरोप है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।

मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता।

अर्थ – मुनि के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप।

रूपक अलंकार के प्रकार –

रूपक अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते है:-

रूपक अलंकार की परिभाषा

1-अभेद रूपक-

अभेद रूपक में उपमेय और उपमान एक दिखाये जाते हैं, उनमें कोई भी भेद नहीं होता है

2-तद्रूप रूपक-

जबकि तद्रुप रूपक में उपमान, उपमेय का रूप तो धारण करता है, पर एक नहीं हो पाता। उसे ‘और’ या ‘दूसरा’ कहकर व्यक्त किया जाता है।

रूपक अलंकार के अन्य भेद-

  • परम्परिक रूपक
  • सांग रूपक
  • निरंग रूपक

1.-परम्परित रूपक-

वह रूपक जिसमें एक आरोप दूसरे आरोप का कारण होता है, वहाँ ‘परम्परित रुपक होता है.
उदाहरण

महिमा-मृगी कौन सुकृति की, खल-वच-विसिख न बाँची ?

अर्थ- यहाँ महिमा में मृगी का आरोप, दुष्ट वचन में बाण के आरोप के कारण करना पड़ा है.

2.-निरंग-रूपक-

जिसमें उपमेय पर उपमान का आरोप होता हो और अंगों का आरोप न होता हो,उसे निरंग रुपक कहते है\

उदाहरण-
हैं शत्रु भी यों मग्न जिसके शौर्य पारावार में .

3.-सांगरूपक-

उपमेय के अंगों अथवा अवयवों पर उपमान के अंगों अथवा अवयवों का आरोप किया जाता है. उसे सांग रूपक कहते है

उदाहरण-

  • उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
  • विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।।

दिए गये उदाहरण में उदयगिरी पर ‘मंच’ का, रघुवर पर ‘बाल-पतंग'(सूर्य) का, संतों पर ‘सरोज’ का एवं लोचनों पर भ्रंग(भोरों) का अभेद आरोप है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा.

  • गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे। 

ऊपर दिए गए उदाहरण में पैरों को ही कमल बता दिया गया है। ‘पैरों’ – उपमेय पर ‘कमल’ – उपमान का आरोप है। उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दिखाई जा रही है

• मन-सागर, मनसालहरि, बूड़े-बहे अनेक.

उदाहरण में मन(उपमेय) पर सागर(उपमान) का एवं मनसा यानी इच्छा(उपमेय) पर लहर(उपमान) का आरोप है. यहां उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है. अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा.

• सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात. स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात.

ऊपर दिए गए उदाहरण में हृदय जलजात में हृदय(उपमेय) पर जलजात यानी कमल(उपमान) का अभेद आरोप किया गया है. अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा.

• मुनि पद कमल बंदिदोउ भ्राता.

ऊपर दिए गए उदाहरण में मुनि के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप.

रूपक अलंकार की परिभाषा
रूपक अलंकार की परिभाषा

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FAQ-

रूपक अलंकार की पहचान कैसे की जाती है?

रूपक अलंकार की पहचान जहां उपमेय में उपमान का आरोप किया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है अथवा जहां गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

रूपक अलंकार की सही परिभाषा क्या है?

रूपक अलंकार की सही परिभाषा -जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।

रूपक अलंकार कितने भेद होते हैं?

रूपक अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते है:-

रूपक और उपमा क्या अंतर है?

1.अभेद रूपक-
2-तद्रूप रूपक-

निकर्ष-

  • जैसा की आज हमने आपको rupak alankar ki paribhasha, रूपक अलंकार की परिभाषा क्या है, रूपक अलंकार के प्रकार जानकारी के बारे में आपको बताया है.
  • इसकी सारी प्रोसेस स्टेप बाई स्टेप बताई है उसे आप फोलो करते जाओ निश्चित ही आपकी समस्या का समाधान होगा.
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