आज हम जानेगे की Sandeh Alankar Ki Paribhasha | संदेह अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित हिंदी में | संदेह अलंकार का अर्थ | आपको हम इसमें बताने वाले है.
Sandeh Alankar Ki Paribhasha-
आज हम यंहा पर आपको संदेह अलंकार किसे कहते है | Sandeh Alankar Kya Hai | Defintion Of Sandeh Alankar In Hindi के बारे में बताने वाले है जो यह पढने के बाद आपको Sandeh Alankar Ke Udaharan से जुडी जानकारी समझ जायेंगे.
जहाँ किसी वस्तु को देखकर संशय बना रहे, निश्चय न हो वहाँ संदेह अलंकार होता है
जब उपमेय और उपमान में समानता देखकर यह तय नहीं हो पाता है कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है, तो वहां संदेह अलंकार होता है।
संदेह अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित-
यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भरे उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
इस उदाहरण में बताया गया है की दुबली-पतली उर्मिला को देख कर लक्ष्मण यह निश्चय नहीं कर सके कि यह उर्मिला की काया है या उसका शरीर । यहां सन्देह बना हैं।
कैंधों ब्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
कैंधों चली मेरु तैं क़सानुसरि भारी हैं।
ऊपर दिए गये उदाहरण में लंकादहन के उपर्युक्त वर्णन में हनुमान की पूँछ को देखकर यह निश्चय नहीं हो पा रहा है कि आकाश में अनेक पुच्छल तारे हैं या पर्वत से अग्नि की नदी-सी निकल रही है। अत: यहाँ सन्देह अलंकार है।
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।।”
इस उदाहरण में बताया गया है महाभारत काल में द्रौपदी के चीर हरण के समय उसकी बढ़ती साड़ी को देखकर दुःशासन के मन में यह संशय उत्पन्न हो रहा है कि यह साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है अथवा साड़ी नारी की बनी हुई है या नारी साड़ी से निर्मित है।
कैंधौ रितुराज काज अवनि उसाँस लेत।
किधौं यह ग्रीषम की भीषण लुआर है।’’
इस उदाहरण में बताया गया है की ग्रीष्म ऋतु की भयंकर लू की लपटे है या वसन्त के विरह में पृथ्वी के अन्तस् से निकलती हुई विरह-दुःख की आहें इसमें संदेह उत्पन्न होता है.
तारे आसमान के है आये मेहमान बनि, केशों में निशा ने मुक्तावली सजायी है।
बिखर गयो है चूर-चूर ह्वै कै चंद किधौं, कैधों घर-घर दीपावली सुहायी है।’’
ऊपर दिए उदाहरण में बताया गया है की दीप-मालिका में तारावली, मुक्तामाला और चन्द्रमा के चूर्णीभूत कणों का संदेह होता है।
कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं।
राम-लखन सखि। होहिं कि नाहीं।।
ऊपर दिए उदाहरण में बताया गया है भरत-शत्रुघ्न को देखकर ग्रामों की स्त्रियों को, सादृश्य के कारण, उनके राम-लक्ष्मण होने का संदेह होता है।
’चमकत कैंधों सूर सूरजा दुधार किंधौ,
सहर सतारा को सितारा चमकत है ?’’
यहाँ जो उदाहरण में बताया गया है की छत्रपति शिवाजी का खड्ग चमक रहा है अथवा सतारा नगर (शिवाजी की राजधानी) का भाग्य सूचक सितारा चमक रहा है। इसका संशय बने रहने के कारण यहाँ संदेह अलंकार है।
sandeh alankar ke udaharan-
’काटे न कटत रात यारी सखि मोसो
सावन की रात किंधौ द्रोपदी की सारी है।’’
क्या शुभ्र हासिनी शरद घटा अवनी पर आकर है छायी।
अथवा गिरकर नभ से कोई सुरबाला हुई धराशायी।।
’’दिग्दाहों से धूम उठे
या जलधर उठे क्षितिज तट के।’’
परिपूरण सिंदूर पूर कैधों मंगलघट |
किधौ शक्र को छत्र मढ्यो, किधौ मणिक मयूख पट ।।
’’मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।’’
’’निद्रा के उस अलसित वन में, वह क्या भावी की छाया।
दृग पलकों में विचर रही या वन्य देवियों की माया।।’’
को तुम्ह श्यामल गौर सरीरा, छत्री रुप फिरहु बन बीरा ।
की तुम्ही देवमहं कोऊ, नर नारायण की तुम्ह दोऊ ।।
’’मद भरे ये नलिन नयन मलीन हैं।
अल्प जल में या विकल लघु मीन हैं।।’’
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निकर्ष-
- जैसा की आज हमने आपको Sandeh Alankar Ki Paribhasha, संदेह अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित जानकारी के बारे में आपको बताया है.
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- यदि फिर भी कोई संदेह रह जाता है तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट कर सकते और पूछ सकते की केसे क्या करना है.
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