आज हम जानेगे की Shringar Ras Ki Paribhasha, श्रृंगार रस की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है और इससे जुडी जानकारी हिंदी में आपको हम इसमें बताने वाले है.
shringar ras ki paribhasha-
आज हम जानेंगे की श्रृंगार रस क्या है | shringar ras kise kehte hai | definition of shringar ras in hindi | श्रृंगार रस का अर्थ के बताने वाले है.-
जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया-कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।
जब विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी के संयोग से ‘रति’ नामक स्थायी भाव ‘रस’ रूप में परिणत होता है, तो उसे शृंगार रस कहते है।
शृंगार रस को ‘रसराज’ अर्थात ‘रसों का राजा’ व रसपति भी कहा जाता है।
श्रृंगार रस के अवयव –
स्थाई भाव- ‘रति है इसकी उत्पत्ति के लिए स्थाई भाव ‘रति’ जिम्मेदार है
संचारी भाव – उग्रता , मरण , जुगुप्सा जैसे भावों को छोड़कर सभी हर्ष, जड़ता, निर्वेद, आवेग, उन्माद, अभिलाषा आदि आते है |
अनुभव – अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, रोमांच, अनुराग आदि है।
उद्दीपन विभाव – नायक – नायिका की चेस्टाए हैं
आल्मबन भाव – प्रक्रति, वसंत, ऋतू, पक्षियों की कुजन, रमणीक उपवन आदि है |
श्रंगार रस के प्रकार –
- संयोग श्रंगार
- वियोग श्रृंगार (विप्रलंभ श्रृंगार)
संयोग श्रृंगार रस :-
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रृंगार रस कहा जाता है।
इसमें संयोग का अर्थ है सुख की प्राप्ति करना।
उदाहरण-
बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाय।
सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाय।
व्याख्या :- गोपियाँ अपने परम प्रिय कृष्ण से बातें करने का अवसर खोजती रहती हैं। इसी बतरस (बातों के आनंद) को पाने के। प्रयास में उन्होंने कृष्ण की वंशी को छिपा दिया है। कृष्ण वंशी के खो जाने पर बड़े व्याकुल हैं।
वियोग श्रृंगार रस : –
एक दूसरे के प्रेम में अनुरक्त नायक एवं नायिका के मिलन का अभाव ‘विप्रलम्भ श्रंगार’ होता है ।
उदाहरण :-
उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस।।
व्याख्या :- गोपियां कहती है, मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया।
श्रृंगार रस की परिभाषा उदाहरण सहित- shringar ras ke udaharan –
shringar Ras ke Udaharan –
मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरो ना कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ।।
बचन न आव नयन भरि बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।
यह तन जारों छार कै कहों कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परों कंत धरै वहं पाउ।।
अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेरा।
इसी बावले से मिलने को डाल रही हूँ मैं फेरा।।
हौं ही बोरी बिरह बरा, कैे बोरों सब गाउँ।
कहा जानिए कहत है, समिहि सीतकर नाउँ।।
दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई।
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई।।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय।।
कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरै भौन में करत है, नैनन ही सों बाता।
तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।
हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी।
सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी।।
महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा।
पीवत ताहिं भूलि गये नेमा।।
तैसी सखी रहै दिन-राती।
हित ध्रुव’ जुगल-नेह मदमाती।।
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
जो थोड़ी भी श्रमित बह हौ गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की ओ कमल-मुख की म्लानतायें मिटाना।।
थके नयन रघुपति छबि देखें।
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।
गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।
सतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हा।
घार बोली स-दुःख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।
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FAQ-
श्रृंगार रस का रंग कैसा होता है?
श्रृंगार रस को दर्शाने वाले नौ रंग हैं हरा (श्रृंगार), सफेद (हास्य), ग्रे (करुणा), लाल (रौद्र), नारंगी (वीरा), काला (भयानक), नीला (भीभत्स्य), पीला (अद्बुथा) और सफेद ( शांता).
श्रृंगार रस के कितने भेद होते हैं उदाहरण सहित बताइए?
श्रृंगार रस के मुख्य दो भेद हैं—संयोग श्रृंगार एवं वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार। संयोग और वियोग दो भेद होते हैं ।
शृंगार रस का दूसरा नाम क्या है?
शृंगार रस का दूसरा रसराज या रसपति कहा गया है।
शृंगार रस के रचयिता कौन है?
श्रृंगार रस मण्डन’ के रचनाकार गोकुलनाथ जी है।
श्रृंगार रस में कौन सा गुण होता है?
श्रृंगार रस में नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति जब रस के अवस्था में पहुंच जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है
श्रृंगार रस का मित्र रस कौन सा है?
श्रृंगार रस का मित्र रस हास्य, वीर और अद्धभुत के साथ मित्रता है
श्रृंगार रस को रसराज क्यों कहा जाता है?
श्रृंगार रस को रसराज माना गया है क्योंकि इसके अंतर्गत वसंत ऋतु, सौंदर्य, प्रकृति, सुंदर वन, पक्षियों श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिकालंकार ऋतु तथा प्रकृति का वर्णन भी किया जाता है।
निकर्ष-
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