Upanyas Ki Paribhasha, उपन्यास की परिभाषा

आज हम आपको Upanyas Ki Paribhasha, उपन्यास की परिभाषा, उपन्यास किसे कहते है, उपन्यास का अर्थ, उपन्यास के तत्व और उपन्यास की विशेषताएं बताने वाले है.

अब हम आपको upanyas ki definition in hindi, उपन्यास क्या है, उपन्यास के भेद के बारे में आपको बताने वाले है –

Upanyas Ki Paribhasha-

उपन्यास शब्द उप तथा न्यास शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है निकट रखी हुई वस्तु।

हिंदी साहित्य के अनुसार उपन्यास वो रचना है जिसे पढ़कर ऐसा लगे कि यह हमारी कहानी है और यह हमारी ही कहानी हो हमारे ही शब्दों में लिखी गई हो उसे उपन्यास कहते है.

उपन्यास मानव जीवन का वह वृहद् चित्र है जिसमे मानव मन के भाव का अद्भुत शक्ति के साथ उसके रहस्यो के उभार तथा अनन्य चित्रण होता है उसे उपन्यास कहते है .

उपन्यास हमारे समाकालीन युग की देन है तथा उसके परिवेश के समस्त सामाजिक परिप्रेक्ष्यों का अत्यंत प्रभावशाली एवं सर्जनात्मक वर्णन है तथा इसका हमारी अन्तः व वाहय जगत की जितनी यथार्थ एवं सुन्दर अभिव्यक्ति है वो उपन्यास में दिखाई पड़ती है.

Upanyas Ki Paribhasha

उपन्यास की परिभाषा विद्वानों द्वारा –

मुंशी प्रेमचंद ने कहा है की – मैं उपन्यास को मानव चिरित्र का चित्र मानता हूँ मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व हैं।

बाबू गुलाब के अनुसार- उपन्यास जीवन का चित्र हैं, प्रतिबिंब नहीं क्योकि जीवन का प्रतिबिंब कभी पूरा नही हो सकता हैं मानव-जीवन इतना कठिन है कि उसका प्रतिबिंब सामने रखना प्रायः असंभव है।

हडसन के अनुसार- उपन्यास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त और सब बातें सच होती हैं उसी प्रकार इतिहास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त कोई बात सच नहीं होती।

श्यामसुन्दर दास के द्वारा- उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कहानी हैं।

Upanyas Ki Paribhasha

उपन्यास के तत्व-

उपन्यास के निम्नलिखित तत्व हैं–

  • कथावस्तु,
  • पात्र और चरित्र-चित्रण,
  • संवाद या कथोपकथन,
  • देश-काल या वातावरण,
  • भाषा-शैली,
  • उद्देश्य।

1. कथावस्तु –

मूल कथा ही कथावस्तु कही जाती है इस कथावस्तु की तीन अवस्थाएँ होती हैं, उदय, विकास तथा अंत उपन्यास में वर्णित सभी घटनाएँ एकबद्ध होनी चाहिए।

2. पात्र और चरित्र-चित्रण-

उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व या अंग पात्र और उनका चरित्र-चित्रण है आज नायक के साथ अन्य पात्रों का उतना ही महत्व हैं, जो कथा को आगे बढ़ाते हैं।
पात्र का चित्रण उसकी सभ्यता और सजीवता पर आधारित है। ये पात्र कथा को जीवन्त बनाते हैं, जिसमें उनका चरित्र उभरकर सामने आ जाता हैं।

3. संवाद या कथोपकथन

कथोपकथन कथावस्तु के विकास एवं पात्रों के चरित्र-चित्रण में पूर्ण सहायक होता है। इससे कथावस्तु में नाटकीयता तथा सजीवता आ जाती हैं।

4. देशकाल और वातावरण

उपन्यासकार प्रारंभ में ही उस स्थिति का जिक्र कर देता है, जिससे स्थान एवं समय का आभास हो उठता है। वातावरण, सामाजिक एवं समस्या-प्रधान उपन्यास में देशकाल के स्थान पर वातावरण का ही प्रयोग किया जाता है। वातावरण से कथा का प्रवाह बना रहता है, जिससे पात्र जीवन्त हो उठता हैं।

5. भाषा-शैली-

भाषा शैली का उपन्यास के तत्वों में अपना प्रमुख और महत्वपूर्ण स्थान होता है भाषा शैली ही उपन्यास को प्रारंभ से अंत तक पढ़ जाने की उत्सुकता और उमंग पाठक में जगाती है।

इसी लिए भाषा सरल, संजीव, पात्रोनुकूल, रोचक, मर्मस्पर्शी, प्रभावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए।

6. उद्देश्य-

उपन्यास का उद्देश्य निस्संदेह कथा के माध्यम से मनोरंजन जुटाना है परन्तु गहराई से देखें तो यह मनोरंजन साधन है, साध्य नहीं उपन्यास का साध्य है जीवन की व्याख्या।

उपन्यासकार का जीवन और जगत प्रति उसकी प्रत्येक समस्या के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण होता है जो किसी न किसी रूप में उपन्यास के पात्रों व घटनाओ के माध्यम से अभिव्यक्ति पते है , यही उपन्यासकार का उद्द्देश्य या अभिव्यकयी जीवन दर्शन होता है।

उपन्यास की विशेषताएं –

उपन्यास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं–

  • उपन्यास एक विस्तृत रचना होती हैं।
  • उपन्यास में जीवन के विभन्न पक्षों का समावेश होता हैं।
  • उपन्यास में वास्तविकता तथा कल्पना का कलात्मक मिश्रण होता हैं।
  • उपन्यास में कार्य तथा उसके कारण की श्रंखला को पिरोया जाता हैं।
  • उपन्यास में मानव-जीवन घटित सत्य घटना का चित्रण होता हैं।
  • इस में जीवन की सम्पूर्णता का चित्र इस प्रकार चित्रण किया जाता है कि पाठक उसकी अन्तर्वस्तु तथा पात्रों से अपनापन पैदा कर सके.

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निकर्ष-

जैसा की आज हमने आपको Upanyas Ki Paribhasha, उपन्यास की परिभाषा के बारे में आपको बताया है.

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