आज हम जानेगे की Vatsalya Ras Ki Paribhasha in Hindi, वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित, Vatsalya Ras Ka Udaharan आपको हम इसमें बताने वाले है.
आज हम यंहा पर आपको वात्सल्य रस क्या है, वात्सल्य रस किसे कहते है, वात्सल्य रस के भेद के बारे में बताने वाले है जो यह पढने के बाद आपको Vatsalya Ras से जुडी जानकारी समझ जायेंगे.
Vatsalya Ras Ki Paribhasha-
जब किसी काव्य को सुनने पर जब प्रेम विशेषतः अनुजों के प्रति के से भावों की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही वात्सल्य रस कहते हैं।
या फिर छोटे छोटे बच्चो के मधुर चेष्टा उनकी बोली के प्रति माता-पिता की ममता एवं से वत्सल रस की उत्पत्ति होती है।
अतार्थ जो भाव छोटे बच्चो से संबंधी प्रेम नामक स्थाई भाव उत्पन होता है वहा वात्सल्य रस कहा जाता है.
वात्सल्य रस के भाव –
स्थाई भाव | वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है। |
आलंबन (विभाव) | माता-पिता, संतान, बालक, शिशु, शिष्य, पुत्र, बालक आदि। |
उद्दीपन (विभाव) | भोली – भाली चेस्टाएं, तुतलाना, चंचलता, नटखटपन, सुंदरता, बाल क्रीड़ा, माता-पिता-संतान के बीच की गतिविधि, भोली-भाली चेष्टाएँ, चंचलता, नटखटपन, माता-पिता-संतानएँ, तुतलाना, हठ करना तथा उसके रूप एवं उसकी वस्तुएँ, आदि। |
अनुभाव | चुम्बन, स्पर्श, मुग्ध होना, आश्रय की चेष्टायें, प्रसन्नता का भाव, स्नेह से बालक को गोद मे लेना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना, थपथपाना, आदि। |
संचारी भाव | हर्ष, गर्व, मौतुसक्य, अभिलाषा, मोह, अभिलाषा, आशा, आवेद, उत्साह, हास, चिंता, चपलता, आवेग, उत्सुकता, अमर्ष, शोक, हास, चिंता, शंका, विस्मय, स्मरण, आदि। |
वात्सल्य रस के भेद –
- संयोग वात्सल्य रस
- वियोग वात्सल्य रस
संयोग वात्सल्य रस :
जब किसी काव्य में जब बालकों की ऐसी बातों का वर्णन होता है, जो उनके माता-पिता आदि के पास उपस्थित रहने
के काल से सम्बंध रखती है, तो उसे संयोग वात्सल्य रस कहा
जाता है।
उदाहरण-
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया। ।
ऊपर दिए उदाहरण में श्री राम के बाल्य अवस्थाओं के क्रीडा को दर्शाया गया है। जिसमें वह घुटनों के बल कभी चलते हैं तो कभी खड़े होकर चलने का अभ्यास करते हैं। उनके पैरों में बंधी पायल की घुंघरू की आवाज पूरे राजमहल में गूंज रही है।
वियोग वात्सल्य रस –
जब किसी काव्य में जब बालकों के माता-पिता आदि से अलग हो जाने से उनके या उनके कारण माता-पिता की
दशा का वर्णन होता है, तब वियोग वात्सल्य रस होता है।
उदाहरण –
संदेश देवकी सों कहिए।
हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो ।
तुक तौ टेव जानितिहि है हो तउ, मोहि कहि आवै।
प्रात उठत मेरे लाल लड़ैतहि माखन रोटी भावै ॥
वात्सल्य रस के 10 उदाहरण- Vatsalya Ras Ka Udaharan
उदाहरण-
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत।।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।।
उदाहरण-
यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै जोइ-सोई कुछ गावै॥
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगे,
कब धरनि पग दै धरै॥
उदाहरण-
तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूल-धुसर तुम्हारे ये गात।|
उदाहरण-
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि – पुनि नन्द बुलावति |
अँचरा – तर लै ढांकि सुर, प्रभु कौ दूध पियावति ||
उदाहरण-
मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छीको केहि विधि पायो।
उदाहरण-
वर दन्त की पंगति कुन्दकली अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की॥
घुँघरारि लटैं अटकै मुख ऊपर कुण्डल लोल कपालन की।
निवछावर प्राण करें तुलसी बलि जाऊँ लला इन बेलन की ॥
उदाहरण-
सदेसो देवकी सो कहियो।
हौं तो धाय तिहारे सुत की, कृपा करति ही रहियौ ।
जदपि देव तुम जानति है हौ, तऊ मोहि कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैते, माखन रोटी भावै॥
उदाहरण-
सुभग सेज सोभित कौसल्या, रुचिर ताप सिसु गोद लिए।
बार-बार विधुवदनि विलोकति, लोचन चारु चकोर किए।
कबहुँ पौढ़ि पय पान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये।
बाल केलि हलरावति, पुलकति प्रेम-पियूष पिये।
उदाहरण-
उदाहरण-
दादा ने चंदा दिखलाया
नेत्र नीरयुत दमक उठे
धुली हुई मुसकान देखकर
सबके चेहरे चमक उठे।
उदाहरण-
हरि अपने रँग में कछु गावत ।
तनक- तनक चरनन सों नाचत, मनहिं मनहिं रिझावत ॥
बाँगि उँचाइ काजरी-धौरी गैयन टेरि बुलावत ।
माखन तकन आपने कर ले तनक बदन में नावत ॥
कबहुँ चितै प्रतिबिंब खंभ में लवनी लिये खवावत।
दुरि देखत जसुमति यह लीला हरखि अनन्द बढ़ावत ॥
उदाहरण-
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निकर्ष-
जैसा की आज हमने आपको Vatsalya Ras Ki Paribhasha, वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित के बारे में आपको बताया है.
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