Veer Ras Ki Paribhasha, वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Veer Ras Ki Paribhasha In Hindi, वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित, Veer Ras Ka Udaharan,veer ras kise kahate hain आपको हम इसमें बताने वाले है.

आज हम जेनेंगे की veer ras ki paribhasha aur udaharan, वीर रस क्या है, definition of veer ras in hindi, और veer ras ka udaharan class 12th बताने वाले है-

veer ras ki paribhasha-

  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है .
  • जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।
  • वीर रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है।
  • वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा यही अन्य रसों के उत्पत्तिकारक रस हैं
  • जिस प्रसंग अथवा काव्य में वीरता युक्त भाव प्रकट हो, जिसके माध्यम से उत्साह का प्रदर्शन किया गया हो वहां वीर रस होता हैं।

वीर रस के अवयव :

  • स्थाई भाव : उत्साह।
  • आलंबन (विभाव) : अत्याचारी शत्रु।
  • उद्दीपन (विभाव) : शत्रु का पराक्रम, शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
  • अनुभाव : कम्प, धर्मानुकूल आचरण, पूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
  • संचारी भाव : आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता, धृति, मति, स्मृति, उत्सुकता आदि।
veer ras ke udaharan

वीर रस के 10 उदाहरण -veer ras ka udaharan

अब तक हमने आपको वीर रस की परिभाषा के बारे में अको ऊपर बताया है और अब हम आपको veer ras ke udaharan नीचे से देख सकते है जो इस प्रकार से है –

उदाहरण– 1

  • वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
  • हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
  • ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
  • वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
  • सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
  • तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
  • वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।

उदाहरण– 2

veer ras ki paribhasha

उदाहरण– 3

  • फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
  • निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।

उदाहरण– 4

  • हाथ गह्यो प्रभु को कमला कहै नाथ कहाँ तुमने चित धारी
  • तुन्दल खाई मुठी दुई दीन कियो तुमने दुई लोक बिहारी
  • खाय मुठी तीसरी अब नाथ कहाँ निज वास की आस बिसारी
  • रंकहीं आप समान कियो अब चाहत आपहिं होय भिखारी।

उदाहरण– 5

  • रण बीच चौकड़ी भर भर कर
  • चेतक बन गया निराला था।
  • राणा प्रताप के घोड़े से
  • पड़ गया हवा का पाला था।।

उदाहरण– 5

  • ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
  • हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये।।
  • देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
  • पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।।

उदाहरण– 6

वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित

उदाहरण– 7

  • लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
  • देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
  • नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
  • सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
  • महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
  • बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
  • खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदाहरण– 8

  • चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
  • करता था भूतल पानी को
  • राणा प्रताप सर काट काट,
  • करता था सफल जवानी को।।

उदाहरण– 9

वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित

वीर रस के प्रकार-

  1. युद्धवीर
  2. दानवीर
  3. दया वीर
  4. धर्मवीर

1-युद्धवीर-

युद्धवीर का आलम्बन शत्रु, उद्दीपन शत्रु के पराक्रम इत्यादि, अनुभाव गर्वसूचक उक्तियाँ, रोमांच इत्यादि तथा संचारी धृति, स्मृति, गर्व, तर्क इत्यादि होते हैं।
जब लड़ने का उत्साह हो।

उदाहरण :-

बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी ।।

2-दानवीर-

इस में दानवीर के आलम्बन तीर्थ, याचक, पर्व, दानपात्र इत्यादि तथा उद्दीपन अन्य दाताओं के दान, दानपात्र द्वारा की गई प्रशंसा इत्यादि होते हैं
जब याचक और दीनों दान करने का उत्साह हो।

उदाहरण :-

भामिनि देहुँ सब लोक तज्यौ हठ मोरे यहै मन भाई।
लोक चतुर्दश की सुख सम्पति लागत विप्र बिना दुःखदाई ।।
जाइ बसौं उनके गृह में करिहौं द्विज दम्पति की सेवकाई।
तौ मनमाहि रुचै न रुचै सो रुचै हमैं तो वह ठौर सदाई ।।

3-दया वीर-

इसमे दयावीर के आलम्बन दया के पात्र, उद्दीपन उनकी दीन, दयनीय दशा, अनुभाव दयापात्र से सान्त्वना के वाक्य कहना और व्यभिचारी धृति, हर्ष, मति इत्यादि होते हैं।
जब दीनों पर दया करने का उत्साह हो।

उदाहरण :-

लेकिन अब मेरी धरती पर जुल्म न होंगे,
और किसी अबला पर अत्याचार न होगा ।।
अब नीलाम न होगी निर्धनता हाटों में,
कोई आँख दीनता से बीमार न होगी ।।

4-धर्मवीर-

धर्मवीर में वेद शास्त्र के वचनों एवं सिद्धान्तों पर श्रद्धा तथा विश्वास आलम्बन, उनके उपदेशों और शिक्षाओं का श्रवण-मनन इत्यादि उद्दीपन, तदनुकूल आचरण अनुभाव तथा धृति, क्षमा आदि धर्म के दस लक्षण संचारी भाव होते हैं सदा धर्म करने का उत्साह हो।

उदाहरण :-

फिरे द्रौपदी बिना वसह, परवाह नहीं है।
धन-वैभव-सुत राजपाट की चाह नहीं है ।।
पहले पाण्डव और युधिष्ठिर मिट जायेंगे।
तदन्तर ही दीप धर्म के बुझ पायेंगे

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निकर्ष-

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