Virodhabhash Alankar Ki Paribhasha, विरोधाभाष अलंकार

आज हम जानेगे की Virodhabhash Alankar Ki Paribhasha In Hindi | विरोधाभाष अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित हिंदी में | विरोधाभाष अलंकार का अर्थ | आपको हम इसमें बताने वाले है.

Virodhabhash Alankar Ki Paribhasha-

आज हम यंहा पर आपको विरोधाभाष अलंकार किसे कहते है | Virodhabhash Alankar Kya Hai | Defintion Of Virodhabhash Alankar In Hindi के बारे में बताने वाले है जो यह पढने के बाद आपको Virodhabhash Alankar Ke Udaharan से जुडी जानकारी समझ जायेंगे.

जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध नहीं होने पर भी विरोध का आभास होता है उसे ही विरोधाभास अलंकार कहते है |

अर्थात जहाँ वास्तविक विरोध न होकर सिर्फ विरोध का आभास होता है, तो वहाँ ‘विरोधाभास अलंकार’ होता है।

विरोधाभाष अलंकार की परिभाषा

विरोधाभाष अलंकार की परिभाषा संस्कृत में –

विरोधाभासालंकारः, संस्कृत -‘विरोधः सोऽविरोधेऽपि विरुद्धत्वेन यद्वचः‘ – वास्तव में विरोध न होने पर भी विरुद्ध रूप से जो वर्णन करना यह विरोधाभास होता है।

Virodhabhash Alankar Ke Udaharan-

अब हम आपको विरोधाभास अलंकार के आसान उदाहरण, manvikaran alankar ke easy example in hindi के बारे में बताने वाले है-

उदाहरण – मीठी लगै अँखियान लुनाई।”

उपर्युक्त उदाहरण में आँखों का लावण्य मीठा प्रतीत होता है। लुनाई का शब्दार्थ है- लवणयुक्त अर्थात् खारा। खरापन यहाँ मीठा लग रहा है, यह विरोध- कथन है, परन्तु लुनाई का तात्पर्य यहाँ पर सुन्दरता के रूप में प्रकट होने से विरोध समाप्त हो गया है।

उदाहरण – या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम-रँग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय ॥

यंहा यह स्पष्ट किया गया है की भक्त का चित्त घनश्याम के काले रंग में ज्यों-ज्यों डूबता है, त्यों-त्यों वह सफेद होता जाता है। काले रंग में डूबने से वस्तु काली हो जाती है, उजली नहीं। इस प्रकार श्वेत और श्याम का संयोग दिखाने के कारण विरोधाभास अलंकार है।

उदाहरण –

विसमय यह गोदावरी, अमृतन के फल देत । केसव जीवन हार कौ, दुख असेस हरि लेत ।

ऊपर दिए उदाहरण में गोदावरी को विसमय बताया गया है, जो विरोध प्रकट करता है । परन्तु विस का अर्थ ‘जल’ प्रकट होने पर विरोध समाप्त हो जाता है। अतः विरोधाभास अलंकार है।

उदाहरण – बैन सुन्या जबतें मधुर,
तबतें सुनत न बैन।

दिए गये उदाहरण में ‘बैन सुन्या’ और ‘सुनत न बैन’ में विरोध दिखाई पड़ता है। सच तो यह है कि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं हो रहा है। यह विरोध तो प्रेम की तन्मयता का सूचक है। अतः यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।

उदाहरण – भर लाऊँ सीपी में सागर
प्रिय ! मेरी अब हार विजय क्या ?

इस उदाहरण सीपी में भला सागर कैसे भरा जा सकता है इसिलए यंहा पर विरोध का आभास हो रहा है ? अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।

उदाहरण – आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।

उपर्युक्त पंक्ति में बताया गया है की ‘आग हूँ’ और ‘शून्य हूं’ में विरोध दिखाई पड़ता है। सच तो यह है कि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं हो रहा है। यह विरोध तो प्रेम की तन्मयता का सूचक है। अतः यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ है।

Virodhabhash Alankar Ke Udaharan

विरोधाभाष अलंकार के 5 उदाहरण-

शीतल ज्वाला जलती है, ईंधन होता दृग जल का ।
यह व्यर्थ सांस चल चलकर करती है काम अनिल का ।

प्रियतम को समक्ष पा कामिनी
न जा सकी न ठहर सकी।

लहरों में प्यास भरी थी, भँवर पात्र था खाली ।
मानस का सबरस पीकर, तुमने लड़का दी प्याली ।।

विरोधाभाष अलंकार की परिभाषा

अचल हो उठते है चंचल,
चपल बन जाते अविचल।
पिघल पङते हैं पाहन दल,
कुलिश भी हो जाता कोमल।।

मूक होइ वाचाल, पंगु चड़इ गिरिबर गहन ।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवउ सकल कलि मल दहन ||

सुलगी अनुराग की आग वहाँ,
जल से भरपूर तङाग जहाँ।
कत बेकाज चलाइयत,
चतुराई की चाल।
कहे देत यह रावरे,
सब गुन बिन गुन माल।।

विकसते मुरझाने को फूल, दीप जलता होने को मंद।
बरसते भर जाने को मेघ, उदय होता छिपने को चांद ।।

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निकर्ष-

  • जैसा की आज हमने आपको Virodhabhash Alankar Ki Paribhasha, विरोधाभाष अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित, Virodhabhash Alankar Ke Udaharan जानकारी के बारे में आपको बताया है.
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