आज हम आपको savaiya Chhand Ka Udaharan, सवैया छंद किसे कहते है, सवैया छंद के उदाहरण के बारे में हिंदी में बताने वाले है.
सवैया छंद किसे कहते है-
सवैया छंद एक सम मात्रिक छंद है जो किसी की प्रशंसा के लिए लिखा जाता है यह एक समान वर्णिक छंद भी है जिसमें चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में 22 वर्णों से लेकर 26 वर्णों तक सवैया छंद होते हैं उसे सवैया छंद कहते है.
सवैया छंद कविता के अंत भाग में आता है और इसमें एक शब्द का दो या दो से अधिक रूपों में वर्णन किया जाता है.
रसखान को सवैया छंद का मुख्य कवि माना जाता है.
savaiya chhand ka udaharan, सवैया छंद के उदाहरण :-
सवैया छंद मुख्य रूप से 11 प्रकार के होते है –
(1) मदिरा सवैया छंद के उदाहरण-
उदाहरण -(1.1)
तोरि सरासन संकर कौ, सुभ सीय स्वयंबर माहि बरी
ताते बढ्यौ अभिमान महा, मन मेरियो नेक न शंकधरी
शीश झुके इस भू हित में,
मिट जाय धरा हित भारत के।
वीर शहीद धरा जनमें,
हित युद्ध किये जन आरत के।
धीर सपूत अनेक हुये,
कवि काव्य रचे मन चाहत के।
पीड़क पूत धरा पर जो,
हकदार वही जन लानत के।
उदाहरण (1.2)–
सो अपराध परो तन सों, अब क्यों सुधरै तुमहू घों कहौ
बाहु दै देहु कुठारहि केशव, आपने घाव को पंथ गहौ
कर्ण महा तप तेज बली,
सुत मात तजे पर मात रखे।
वीर सुयोधन मीत मिले,
नित भाव सहोदर स्वाद चखे।
सूत सपूत कहें सब ही,
जननी हर हाल स्व नैन लखे।
ईश अचंभित देख जिसे,
गिरि धारि सके निज एक नखे।
(2) मालती सवैया (मत्त गयंद छन्द)-
उदाहरण (2.1)–
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूं पुर को तजि डारौं
आठहुं सिद्धि नवौं निधि को सुख नंद की गाय चराय बिसारौं
रसखान कहैं इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं
कोटिन हूं कलघौत के धाम करील क। कुंजन ऊपर बारौं
उदाहरण (2.2)-
(ब) देखि बिहाल बिवाइन सों पद कंटक जाल लगे पुनि जोये
हाय! महादुःख पायो सखा। तुम आयै इतै न किते दिन खोये
देखि सुदामा की दीन दसा करुना करि कै करूनानिधि रोये
पानी परात को हाथ छुयोनहिं, नैननि के जल सों पग धोये
(3) सुमुखी सवैया-
उदाहरण (3.1)-
हिये वनमाल रसाल धरे, सिरे मोर किरीट महा लसिबो
कसे कटि पीत-पटी, लकुटी कर, आनन पै मुरली रसिबो
कलिंदि के तीर खड़े बलवीर अहीरन बाँह गये हँसिबो
सदा हमरे हिय मंदिर में यह बानक सों करिये बसिबो
उदाहरण (3.2)-
जुलोक लगें सियराम हिं साथ चलै बनमाहिं फिर न चहै
हमें प्रभु आयुसदेहु चलैर उरे संग यो कर जोरि कहैं
चले कछु दूर न मैं पग धुरि भले फल जन्म अनेक लहैं
सियासुमुखी हरि फेरि तिन्हे बहु भाँतिन तै समुझाय कहैं
(4) चकोर सवैया-
उदाहरण (4.1)-
भासत ग्वाल सखी गन में हरि राजत तारन में जिमि चन्द
नित्य नयो रचि रास मुद्रा बज मे हरि खेलत आनंद कन्द
या छबि काज भये ब्रज बासि चकोर पुनीत लखै नंद नन्द
धन्य वही नर नार नारि सराहत या छवि काटत जो भव फन्द
(5) किरीट सवैया-
उदाहरण (5.1)-
भावसु धातल पापमहा तब धाइधरा गइ देव सभा जहँ
आरत नाद पुकार करी सुनि वाणि भई नम धीर धरौ तहँ
ले नर देह हतौं खल पुंजनि था पहुँचे नय पाथ मही महँ
यो कहि चारिभुजा हरि माथ किरीट घरे जनमें पुहुमी महँ
उदाहरण (5.2)-
मानुस हों तो वहीं रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारिन
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मंझारिन
पाहन ही तो वही गिरि को जु भयो कर छत्र पुरंदर धारनि
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि, कालिंदि कूल कंदब की डारनि
(6) दुर्मिल सवैया छंद के उदाहरण-
उदाहरण (6.1)-
सखि ! नीलनभः सर में उतरा यह हंस अहा तरता-तरता
अब तारक मौक्तिक शेष नहीं, निकला जिनको चरता-चरता
अपने हिम-बिन्दु बचे तब भी, चलता उनको धरता-धरता
गड़ जायँ न कंटक भूतल के, कर डाल रहा डरता-डरता
उदाहरण (6.2)-
पल को न रुको पथ को मथ दो,रन में कुचलो रिपु के फन को।
अब काल कराल करो वश में,कलि काल भजो मनमोहन को।
जिसने मन को निज जीत लिया,करता क्षण में वश में जन को।
उस नाथ दया मय को सुमिरो,जिसने कुचला तब रावन को।
उदाहरण (6.3)-
इसके अनुरूप कहै किसको, यह देश सुदेश समुन्नत है।
समझे सुरलोक समान उसे, उनका अनुमान असंगत है।
कवि कोविद-वृन्द बखान रहे, सबका अनुभूत यही मत है।
उपमान विहीन रचा विधि ने, बस भारत के सम भारत है।
उदाहरण (6.4)-
सब जाति फटी दुख की दुपटी, कपटी न रहै जहँ एक घटी
निपटी रुचि मीचु घटी हूं घटी, जग जीव जतीन कि छूटि तटी
अघ ओध कि बेरि कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान वटी
चहु ओरनि नाचति मुक्ति नटी गुन घ्रजटी बन पंचवटी
(7) अरसात सवैया-
उदाहरण (7.1)-
भासत रूद्रज ध्यानिन में पुनि सार सुतीजस बानिन ठानिये
नारद ज्ञानिन पानिन गंग सुरानिन में विकटोरिय मानिये।
दानिन में जस कर्ण बड़े तस भारत अम्ब भली उर आनिये।
बेटन के दुख मेटन में कबहुं अरसात नहीं फुर जानिये।
उदाहरण (7.2)-
जा थल कीन्हे बिहार अनेकन ता थल कांकरि बैठि चुन्यौ करें।
जा रसना सों करी बहु बातनि ता रसना सों चरित्र गुन्यौ करें।
आलम जौन से कुंजन में करी खेल तहाँ तब सीस धुन्यौ करें।
नैनन में जे सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यौ करें।
(8) सुन्दरी सवैया छंद के उदाहरण-
उदाहरण (8.1)-
सब सों गहि पाणि मिले रघुनन्दन भेंटि कियो सबको सुख भागी
जबहीं प्रभु पांव धरे नगरी महँ ताछिन तें बिपदा सबभागी
लखि के विधु पूरण आनन मातु लट्यो मुद ज्यों मृत सोवत जागी
यहि औसर की हर सुन्दर मूरति धारि जौं हिय में अनुरागी ।।
उदाहरण (8.2)-
बर बुद्धि बिरंचि ने भाल चचा, कुछ ऐसी लकीर खिंची बिरची है ।
कि सदैव विपत्ति बवंडर में, दुख अंधड़ में जनु होड़ मची है ॥
तिहुँ पे नित दानवी दीन दसा, सिर पै चढ़ि नङ्ग उलङ्ग नची है ।
फिर कौन कथा पगई जो गई, भगवान भला भगई तो बची है ॥
उदाहरण (8.3)-
सुख-शान्ति रहे सब ओर सदा, अविवेक तथा अघ पास न आवे
गुण-शील तथा बल-बुद्धि बढ़ें, हठ-बैर-विरोध घटे मिट जावें।
सब उन्नति के पथ में विचरें, रति पूर्ण परस्पर पुण्य कमावें।
दृढ़ निश्चय और निरामय होकर निर्भय जीवन में जय पावें ।।
(9) अरविन्द सवैया-
उदाहरण (9.1)-
सबसों लघुआपुहिं जा नियजू यह धर्म सनातन जान सुजान।
जबहिं सुमती अस आनि बसै, उर संपति सर्व विराजत आन।
प्रभु व्याप रहयो सचराचर में तजि बैर सुभक्ति सजौ मतिमान।
नित राम पदै अरविंदन को मकरंद पियो सुमिलिंद समान ।।
(10) मत्तगयंद सवैया छंद-
उदाहरण (10.1)-
पाप बढ़े चहुँ ओर भयानक हाथ कृपाण त्रिशूलहु धारो।
रक्त पिपासु लगे बढ़ने दुखके महिषासुर को अब टारो।
ताण्डव से अरि रुण्डन मुण्डन को बरसा कर के रिपु मारो।
नाहर पे चढ़ भेष कराल बना कर ताप सभी तुम हारो।।
उदाहरण (10.2)-
गणिका, गज, गीध, अजामिल को कैसे तारा हमको भी तारो ।
हौं भवकूप पड़्यौं मै पापी दीना नाथ जो चाहो उबारो ।
तुम बिन कोई हे रघुनन्दन् हम दीनन को नाहि सहारो ।।
रज्जन नाव पड़ी मझधार हे खेवन हार तुम पार उतारो ।।
उदाहरण (10.3)-
नेत्र विशाल हँसी अति मोहक तेज सुशोभित आनन भारी।
क्रोधित रूप प्रचण्ड महा अरि के हिय को दहलावन कारी।
हिंसक शोणित बीज उगे अरु पाप बढ़े सब ओर विकारी।
शोणित पी रिपु नाश करो पत भक्तन की रख लो महतारी।।
(11) लवंगलता सवैया-
उदाहरण (11.1)-
जुयोग लवंग लतानि लयो तब सूझ परे न कछू घर बाहर।
अरे मन चंचल नेक विचार नहीं यह सार असार सरासर।
भजौ रघुनन्दन पाप निकंदन श्री जग बंदन नित्य हियाधर।
तजौ कुमती धरिये सुमती शुभ रामहिं राम रटौ निसि बासर ।।
(12) सुख (कुन्दलता) सवैया-
उदाहरण (12.1)-
सबसौं ललुआ मिलिके रहिये मन जीवन वन मूरि सुनौ मनमोहन
इमि बोधि खयाय पियाय सखा सँग जाहु कहै मृदु सौं वन जोहन
धरि मात रजायसु सीस हरि नित यामुन कच्छ फिरें सह गोपन
यहि भाँति हरी जसुदा उपदेसहिं भाषत नेह लहैं सुख सों धन।।
निकर्ष-
जैसा की आज हमने आपको savaiya Chhand Ka Udaharan, सवैया छंद किसे कहते है इसके बारे में आपको बताया है.
इसकी सारी प्रोसेस स्टेप बाई स्टेप बताई है उसे आप फोलो करते जाओ निश्चित ही आपकी समस्या का समाधान होगा.
यदि फिर भी कोई संदेह रह जाता है तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट कर सकते और पूछ सकते की केसे क्या करना है.
में निश्चित ही आपकी पूरी समस्या का समाधान निकालूँगा और आपको हमारा द्वारा प्रदान की गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होतो फिर आपको इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते है.
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