Chhand Ki Paribhasha Pdf, छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Chhand Ki Paribhasha | छंद की परिभाषा उदाहरण सहित|  छंद का अर्थ | छंद के प्रकार | छंद क्या है इसके बारेमें आपको हम इसमें बताने वाले है.

Chhand Ki Paribhasha-

अब आपको यंहा पर हम Chhand Kya Hai, Chhand Kise Kehte Hai, Defination Of Chhand In Hindi, Chhand ke udaharan बताने वाले है-

वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि पद रचना पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं’। अर्तार्थ मात्रा और वर्ण आदि के विचार से होने वाली वाक्य-रचना को छंद कहते हैं। अर्थात काव्य का वह रूप जो उसे समुचित आकार प्रदान करें उसे छंद कहते हैं।

छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऋग्वेद’ में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।

छंद की परिभाषा उदाहरण सहित
छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

छंद का अर्थ-

छंद शब्द ‘चद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘आह्लादित करना’, ‘खुश करना’। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है।
छंद शब्द ‘छम्‘ और ‘द‘ दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें छम् का अर्थ होता है ‘समुचित आकार‘ और ‘द‘ का अर्थ होता है, देने वाला, इस प्रकार छंद का अर्थ हुआ समुचित आकार देने वाला.

छंद की परिभाषा विद्वानों द्वारा-

पाणिनि के अनुसार – छंद: पादौ तु वेदस्य’ अर्थात बिना छंद के वेद चलने में असमर्थ है।

वैदिक वार्तिककार सायण के द्वारा – अपमृत्युं वारयितुं आच्छादयति इति छंद:‘ अर्थात कवि और उसकी कृति को जो अपमृत्यु से बचाता है वह छंद है।

अमर सिंह के अनुसार – ‘लयाधारो छंद:‘ अर्थात छंद का आधार लय माना जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है “छोटी-छोटी ध्वनियों के प्रवाह पूर्ण सामंजस्य का नाम छंद है।

chhand ke udaharan
छंद के प्रकार, chhand ke udaharan
छंद के प्रकार, chhand ke udaharan

छंद के भेद -छंद के प्रकार –

छंद के दो भेद हैं-

  • मात्रिक छंद,
  • वर्णिक छंद

(1) मात्रिक छंद

मात्रिक छंद वो छंद होता है जिसमे मात्रा की गणना के आधार पर जो छंद बनते हैं उन्हें मात्रिक छंद कहा जाता है। मात्रिक छंद में वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है परन्तु उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।

मात्रिक छंद के तीन भेद होते हैं-

  • (।) सममात्रिक छंद,
  • (।।) अर्द्धसममात्रिक छंद,
  • (।।।) विषममात्रिक छंद
सममात्रिक छंद-

सममात्रिक छंद वो होते है जिनके चारों चरणों की संख्या तथा उनका नियोजन क्रम समान होता है; जैसे- चौपाई, गीतिका, रोला, सरसी, हरिगीतिका, रूपमाला, तोमर, आल्हा आदि।

(ii) अर्द्धसममात्रिक छंद

अर्द्धसममात्रिक छंद वो होते है जिनकी सम-सम तथा विषम-विषम चरणों की मात्राएँ समान होती हैं; जैसे- दोहा, बरवै, सोरठा, उल्लाला आदि।

(iii) विषममात्रिक छंद

विषममात्रिक छंद वो होते है जिनकी सभी चरणों की मात्राएँ भिन्न-भिन्न होती हैं; जैसे- कुंडलिया, छप्पय आदि।

(2) वर्णिक छंद

वर्णिक छंद वो है जो वर्णों के आधार पर जो छंद बनते हैं उन्हें वर्णिक छंद कहा जाता है। जहाँ मात्रिक छंद में मात्राओं का निश्चित क्रम होता है वहीं वर्णिक छंद में वर्णों का।

वर्णिक छंद के दो भेद होते हैं-

  • (।) साधारण,
  • (।।) दंडक
(i) साधारण-

एक से छब्बीस वर्ण तक के चरण रखने वाले को ‘साधारण’ वर्णिक छंद कहते हैं. जैसे

  • 11 वर्णों वाले- इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, शालिनी, भुजंगी आदि।
  • 12 वर्णों वाले- द्रुतविलम्बित, तोटक, वंशस्थ आदि।
  • 14 वर्ण वाला- वसंततिलका
  • 15 वर्ण वाला- मालिनी
  • 17 वर्ण वाले- मंद्रक्रांता, शिखरिणी आदि।
  • 19 वर्ण वाला- शार्दूलविक्रीडित
  • 22 से 26 वर्ण वाला सवैया- मत्तगयंद, मदिरा, सुमुखी, मुक्तहरा, द्रुमिल, गंगोदक, किरीट, सुंदरी, अरविंद आदि।
(ii) दंडक

26 वर्ण से अधिक वर्ण रखने वाले को ‘दंडक’ वर्णिक छंद कहते हैं. जैसे- मनहरण, घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी आदि।

छंद के अंग-

छंद के मुख्यत सात अंग होते हैं।

  1. चरण और पद
  2. वर्ण और मात्रा
  3. मात्रा
  4. यति
  5. गति
  6. तुक
  7. गण

चरण और पद-

एक छंद में चार चरण होते हैं। चरण छंद का चौथा हिस्सा होता है। इस को पाद भी कहा जाता है। प्रत्येक पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।

चरण के प्रकार-

  • सम चरण
  • विषम चरण

(a). समचरण :- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहा जाता हैं।

(b). विषमचरण :- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहा जाता है।

वर्ण और मात्रा-

छंद के चरणों को वर्णों की गणना के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। छंद में जो अक्षर प्रयोग होते हैं उन्हें वर्ण कहते हैं।

मात्रा की दृष्टि से वर्ण के प्रकार

  • लघु या ह्रस्व स्वर
  • गुरु या दीर्घ स्वर

(a). लघु या ह्रस्व स्वर :- जिन्हें बोलने में कम समय लगता है उसे लघु या ह्रस्व वर्ण कहते हैं।

(b). गुरु या दीर्घ स्वर :- जिन्हें बोलने में लघु वर्ण से ज्यादा समय लगता है उन्हें गुरु या दीर्घ वर्ण कहते हैं।

छंद में मात्रा –

किसी वर्ण के उच्चारण में जितना समय लगता है उसे ही मात्रा कहा जाता है। अथार्त किसी वर्ण के उच्चारण काल की अवधि मात्रा कहलाती है।

छंद में यति –

पद्य का पाठ करते समय गति को तोडकर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं। सरल शब्दों में छंद को पढ़ते समय जहाँ पर कुछ देर के लिए रुकना पड़ता है उसे यति कहते हैं। इसे विराम और विश्राम भी कहा जाता है।

इनके लिए (,), (?), (!) इत्यादि जैसे चिन्ह निश्चित होते हैं। हर छंद में बीच में रुकने के लिए कुछ स्थान निश्चित होते हैं इसी रुकने को विराम या यति कहा जाता है। यति के ठीक न रहने से छंद में यतिभंग दोष आ जाता है।

छंद में गति –

पद्य के पथ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं। अथार्त किसी छंद को पढ़ते समय जब एक प्रवाह अनुभव होता है उसे गति या लय कहा जाता है। हर छंद में विशेष प्रकार की लय होती है जिसे गति कहते हैं। इसके ठीक न रहने पर गतिभंग दोष आ जाता है।

छंद में तुक –

समान उच्चारण वाले शब्दों के उपयोग को ही तुक कहा जाता है। छंद में पदांत के अक्षरों की समानता तुक कहलाती है।

तुक के प्रकार-

  • तुकांत कविता
  • अतुकांत कविता

छंद में गण –

मात्राओं, वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिए तीन वर्णों के समूह को गण कहा जाता है। वर्णिक छंदों की गणना गण के क्रम के अनुसार की जाती है। एक गण तीन वर्णों का होता है और गणों की संख्या आठ होती है।

गण – यगण, तगण, लगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण आदि।

छंद की परिभाषा उदाहरण सहित – chhand ke udaharan

  • II ISI II SI ISII
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
  • SS II SS IS SS SII SI
    मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय।
  • SI SI IIII IISS
    राम दूत अतुलित बलधामा।
  • I I IISI SI II SII
    जय हनुमान ग्यान गुन सागर।
  • SII SI III II SS
    अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।
  • IIS IS S SIS S SI II S II IS
    कहते हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
  • II II SS III SI SSI III S
    नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में।
  • II S IS S SI SS S IS SII IS
    हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।
  • III SIS SI SI II SI III S
    रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में। ।
  • S II S SS IS SI III II SI
    जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय। ।
  • SI SI II SI IS III IIS III
    कुंद इंदु सम देह, उमा रमन करुना अयन।
  • SI SI II SI III IS SII III
    जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन॥
  • SS IIS SI S IIS I SS SI
    साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास।
    पलक दूर नहिं कीजिये, सदा राखिये पास।
    सदा राखिये पास, त्रास, कबहु नहिं दीजै।
    त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुन लीजै।
    कह गिरिधर कविराय, राम सों मिलिगौ जाई।
    पाय विभीशण राज, लंकपति बाजयो साईं।
    SI ISII SI SIII SS SS
  • IS ISI ISI I IIS II S II S
    जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में।
    सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो।
    शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।
    सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के सुखकर नियम।
    II SI ISII S IS IIS S IIII III

छंद की परिभाषा पीडीऍफ़-

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निकर्ष-

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