आज हम जानेगे की visarg Sandhi Ki Paribhasha, विसर्ग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित और इसी प्रकार की परिभाषा आपको प्रदान करते है.
visarg Sandhi Ki Paribhasha-
आज हम आपको विसर्ग संधि क्या है | विसर्ग संधि किसे कहते है | Visarg sandhi definition in hindi | विसर्ग संधि का अर्थ बताने वाले है जो की उसे समझाने के लिए 13 नियम है वो सभी नियम आपको हम बतायेंगे.
जब हम संधि करते है तब विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन आ जाए तब जो परिवर्तन होता है ,वह विसर्ग संधि कहलाता है। यानि किसी विसर्ग का व्यंजन वर्ण के स्वर अथवा व्यंजन वर्ण से मेल के कारण होने वाले विकार को विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के प्रकार-
- सत्व विसर्ग संधि
- उत्व संधि
- रूत्व संधि
1.सत्व संधि-
जब हम संधि करते है तो उस समय किसी भी पद के आखिर में या अंत में “अ” स्वर के अलावा कोई अन्य स्वर आये और उसके बाद में विसर्ग आये तथा दूसरे शब्द के शुरू में वर्ण का तीसरा, चौथा, पांचवा अक्षर “य्, र्, ल्, व्” में से कोई आये तो वर्ण अगले वर्ण के ऊपर चढ़ जाता है और विसर्ग “र” हो जाता है।
उदारहण-
- रामः + च = रामश्च
- पुर: + कारः = पुरस्कारः
- धनु: + टंकारः = धनुष्टंकारः
- रामः + टीकते = रामष्टीकते
- नमः + कारः = नमस्कारः
- आ: + चर्यः = आश्चर्यः
- नि: + संदेहः = निस्संदेहः
2.उत्व संधि-
जब हम संधि करते है तो उस समय किसी प्रथम पद के आखिर या अन्त मे “अ” आये उसके बाद मे विसर्ग आये तथा दूसरे पद के शुरुआत् क तीसरा, चौथा, पांचवा “य्, र्, ल्, व्” में से कोई आये तो “उ” बन जाता है, अतः अ+उ = ओ हो जाता है।
उदारहण-
- मन + हर = मनोहर
- तप + वन = तपोवन
3.रूत्व संधि-
जब हम संधि करते है तो उस समय किसी पद के अन्त मे कोई भी स्वर आने के पश्चात विसर्ग आये तथा उसके बाद दूसरे पद के शुरुआत् मे “त/थ” आने पर “स” बन जाता है। यदि “च/छ्” आता है तो “श” बन जाता है, उसके बाद मे “ट/ठ” आने पर “ष” बन जाता है।
उदारहण-
- मुनिः + अयम् = मुनिरयम्
- यजु: + वेद = यजुर्वेदः
- हरिः + अयम् = हरिरयम्
- निः + गुणम् = निर्गुणम्
- दुः + बलः = दुर्बलः
- निः + ईक्षणम् = निरीक्षणम्
- आशीः + वादः = आशीर्वादः
- बहिः + मुखः = बहिर्मुखः
- दुः + आशा = दुराशा
विसर्ग संधि के नियम-
नियम 1-
जब हम संधि करते है तो उस समय शब्द में विसर्ग के बाद च या छ हो तो विसर्ग श हो जाता है। ट या ठ हो तो ष तथा त् या थ हो तो स् हो जाता हैं।
उदाहरण–
- नि: + तार = निस्तार
- दु: + शासन = दुश्शासन
- धनु: + टकार = धनुष्टकार
- नि: + छल = निश्छल
- नि: + चल = निश्चल
नियम 2-
जब हम संधि करते है तो उस समय विसर्ग के बाद श, ष या स आये तो विसर्ग अपने मूल रूप में बना रहता है या उसके स्थान पर बाद का वर्ण हो जाता है।
- मन: + संताप -मनस्संताप
- नि: + स्वार्थ- निस्स्वार्थ
- दु: + साहस- दुस्साहस
- दु: + स्वप्न -दुस्स्वप्न
- पुन: + स्मरण -पुनस्स्मरण
- दु: + साध्य -दुस्साध्य
- नि: + सन्देह -निस्सन्देह
नियम 3–
अगर संधि के समय विसर्ग के बाद क, ख या प, फ हों तो विसर्ग में कोई विकार नहीं होता।
- पय: + पान- पय:पान
- रज: + कण- रज:कण
नियम 4-
जब हम संधि करते है तो उस समय विसर्ग से पहले ‘अ’ हो और बाद में घोष व्यंजन या ह हो तो विसर्ग ओ में बदल जाता है।
- मन: + अभिलाषा -मनोभिलाषा
- सर: + ज -सरोज
- अध: + वस्त्र -अधोवस्त्र
- पुर: + हित -पुरोहित
- यश: + धरा -यशोधरा
- अध: + भाग -अधोभाग
- तप: + बल -तपोबल
- वय: + वृद्ध- वयोवृद्ध
- मन: + अनुकूल -मनोनुकूल
- तप: + भूमि -तपोभूमि
- यश: + दा -यशोदा
- मन: + योग -मनोयोग
- मन: + रंजन -मनोरंजन
नियम 5-
जब हम संधि करते है तो विसर्ग से पहले अ या आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तथा बाद में कोई घोष वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान र आ जाता है।
- निः + धन -निर्धन
- दु: + उपयोग = दुरूपयोग
- निः + आहार- निराहार
- निः + आशा -निराशा
- दू: + गुण = दुर्गुण
- निः + गुण = निर्गुण
नियम 6-
जब हम संधि करते समय विसर्ग के बाद त, श या स हो तो विसर्ग के बदले श या स् हो जाता है।
- अन्त: + तल -अन्तस्तल
- नि: + ताप -निस्ताप
- नि: + तारण -निस्तारण
- दु: + तर -दुस्तर
- निः + रोग- निरोग
- मन: + ताप -मनस्ताप
- निः + रस -नीरस
- बहि: + थल -बहिस्थल
- निः + तेज -निस्तेज
नियम 7-
जब हम संधि करते समय विसर्ग से पहले अ या आ हो तथा उसके बाद कोई विभिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है एवं पास-पास आये हुए स्वरों की संधि नहीं होती।
- पय: + पान- पय:पान
- मन: + कल्पित -मन:कल्पित
- प्रात: + काल- प्रात:काल
- अंत: + कारण -अंत:कारण
- मन: + कामना -मन:कामना
- अंत: + पुर -अंत:पुर
नियम 8-
जब हम संधि करते समय विसर्ग से पहले अ या आ हो तथा उसके बाद कोई विभिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है एवं पास-पास आये हुए स्वरों की संधि नहीं होती।
- तत: + एव ततएव
- अत: + एव अतएव
- पय: + आदि पयआदि
- मन: + उच्छेद मनउच्छेद
विसर्ग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित-
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FAQ-
विसर्ग संधि का उदाहरण कौन सा है?
विसर्ग संधि का उदाहरण -विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं । उदाहरण : मनः + बल = मनोबल । अतः + एव – अतएव
विसर्ग संधि क्या है?
संधि करते है तब विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन आ जाए तब जो परिवर्तन होता है ,वह विसर्ग संधि कहलाता है। यानि किसी विसर्ग का व्यंजन वर्ण के स्वर अथवा व्यंजन वर्ण से मेल के कारण होने वाले विकार को विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग का दूसरा नाम क्या है?
विसर्ग का दूसरा विसर्ग, अनुस्वार, जिहामूलीय तथा उपध्मानीय – ये चारों विशिष्ट स्वर कहलाते हैं। ये शर के रूप में भी अभिव्यक्त होते हैं। इन्हें “अयोगवाह” कहते हैं।
विसर्ग संधि को कैसे पहचाने?
विसर्ग ( ः ) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार (परिवर्तन) होता है.
विसर्ग ध्वनि कौन सी होती है?
विसर्ग की ध्वनि विसर्ग के पूर्व ‘अ’कार हो तो विसर्ग का उच्चार ‘ह’ जैसा; ‘आ’ हो तो ‘हा’ जैसा; ‘ओ’ हो तो ‘हो’ जैसा, ‘इ’ हो तो ‘हि’ जैसा… इत्यादि होता है।
निकर्ष-
- जैसा की आज हमने आपको visarg Sandhi Ki Paribhasha, विसर्ग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित, विसर्ग संधि के नियम, जानकारी के बारे में आपको बताया है.
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