Sandhi Ki Paribhasha, संधि की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Sandhi Ki Paribhasha, संधि की परिभाषा, Sandhi Ke Udaharan, Sandhi Ke Bhed, Sandhi Ke examples Sandhi in Hindi के बारे में बताने वाले है.

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Sandhi Ki Paribhasha-

दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार (परिवर्तन) को सन्धि कहते हैं.

‘संधि’ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘जोड़’ या ‘मेल दो निकटवर्ती वर्गों के परस्पर मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते हैं।

जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं।

जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं।

संधि विच्छेद क्या होता है :- संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।

sandhi ke udaharan -Sandhi examples in Hindi

  • परम + ईश्वर = परमेश्वर
  • स + अवधान = सावधान
  • कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
  • आत्मा + आनंद = आत्मानंद
  • वधू + आगमन = वध्वागमन
  • चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय
  • ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी

संधि के प्रकार – Sandhi ke Bhed

अब तक हमने जाना संधि की परिभाषा उदाहरण सहित अब हम संधि के प्रकार उदाहरण सहित आपको बताने वाले है-

संधि के तीन प्रकार होते है-

  1. स्वर सन्धि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि –

स्वर के साथ स्वर के योग से होने वाले विकार को स्वर संधि कहते हैं.

हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ कुल ग्यारह स्वर होते हैं.

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं.

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. यण संधि
  4. वृद्धि संधि
  5. अयादि संधि

दीर्घ संधि –

यदि अ, आ या इ, ई या उ, ऊ में से कोई भी स्वर अपने सजातीय स्वर से जुड़े तो बनने वाला स्वर सदैव दीर्घ स्वर संधि कहते है.

उदाहरण

  • अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
  • अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
  • आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
  • आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
  • इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
  • इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
  • इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
  • इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
  • उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
  • उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
  • ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
  • ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
  • ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण

गुण सन्धि-

जब अ अथवा आ के आगे ‘इ’ अथवा ‘ई’ आता है तो इनके स्थान पर ए हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे उ या ऊ आता है तो ओ हो जाता है तथा अ या आ के आगे ऋ आने पर अर् हो जाता है।

दूसरे शब्दों में, हम इस कि जब अ, आ के आगे इ, ई या ‘उ’, ‘ऊ’ तथा ‘ऋ’ हो तो क्रमश: ए, ओ और अर् हो जाता है, इसे गुण सन्धि कहते हैं;

उदाहरण

अ, आ + ई, ई = ए
अ, आ + उ, ऊ = ओ
अ, आ + ऋ = अर्

गुण सन्धि – उदाहरण
  • अ + इ = ए – उप + इन्द्र = उपेन्द्र
  • अ + ई = ए – गण + ईश = गणेश
  • आ + इ = ए – महा + इन्द्र = महेन्द्र
  • आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेश
  • अ + उ = ओ – चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
  • अ + ऊ = ओ – समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
  • आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
  • आ + ऊ = ओ – गंगा + उर्मि = गंगोर्मि
  • अ + ऋ = अर् – देव + ऋषि = देवर्षि
  • आ + ऋ = अर – महा + ऋषि = महर्षि

यण स्वर सन्धि-

जब इ, ई, उ, ऊ, ऋ के आगे कोई भिन्न स्वर आता है तो ये क्रमश: य, व, र, ल् में परिवर्तित हो जाते हैं इस परिवर्तन को यण स्वर सन्धि कहते हैं।

  • जब इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
  • जब उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
  • जब ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है।

उदाहरण :-

Sandhi Ki Paribhasha, संधि की परिभाषा उदाहरण सहित

उदाहरण-

  • अनु + अय = अन्वय
  • परी + आवरण = पर्यावरण
  • सु + आगत = स्वागत
  • अभी + आगत = अभ्यागत
  • इति + आदि = इत्यादि

वृद्धि स्वर सन्धि-

जब संधि करते समय जब अ, आ के साथ ए, ऐ हो तो ‘ऐ‘ बनता है और जब अ, आ के साथ ओ, औ हो तो ‘औ‘ बनता है उसे वृद्धि स्वर संधि कहते हैं।

  • अ या आ का मेल ए या ऐ से होने पर ऐ रूप में परिवर्तित हो जाता है।
  • तथा अ या आ का मेल ओ या औ से होने पर औ हो जाता है.

उदाहरण :-

  • वन + औषध = वनौषध
  • सदा + एव = सदैव
  • जल + ओक = जलौक
  • एक + एक = एकैक

अयादि स्वर संधि-

जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर होता है, तो ‘ए – अय, ‘ऐ – ‘आय’, ‘ओ – अव’ में, ‘औ – आव’ जाता है ‘य, व्’ से पहले व्यंजन पर ‘अ, आ’ की मात्रा होती है तो अयादि संधि हो सकती है.

लेकिन यदि और कोई विच्छेद नहीं निकलता है, तो ‘+’ के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखा जाता है, उसे अयादि संधि कहते है।

संधि की परिभाषा उदाहरण सहित

व्यंजन संधि

किसी व्यंजन के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से उस व्यंजन में जो परिवर्तन होता है, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाता है।

“व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं।

जैसे- वाक् + हरि = वाग्घरि

नियम 1.- यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ व्यंजन के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए, ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’ आए या कोई स्वर आए, तो ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण (क्रमशः ‘ग्’, ‘ज्’, ‘ड्’, ‘द्’, ‘ब्’) हो जाता है।

उदाहरण-

दिक + गज = दिग्गजसत् + धर्म = सद्धर्म
दिक् + अंत = दिगंतसत् + वाणी = सद्वाणी
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शनसत् + गति = सद्गति
दिक + भ्रम = दिग्भ्रमसत् + उपयोग = सदुपयोग
दिक् + अंबर = दिगंबरसत् + भावना = सद्भावना
दिक् + विजय = दिग्विजयजगत् + अम्बा = जगदम्वा
वाक् + जाल = वाग्जालजगत् + गुरू = जगद्गुरू
वाक् + ईश = वागीशजगत् + आधार = जगदाधार
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ताजगत् + आनंद = जगदानंद
तत् + अनुसार = तद्नुसारअच + अंत = अजंत
तत् + भव = तद्भवषट् + दर्शन = षड्दर्शन
तत् + रूप = तद्रूपभगवत् + भजन = भगवद्भजन
उत् + धार = उद्धारभगवत + गीता = भगवद्गीता
अप् + ज = अब्ज (कमल)ऋक् + वेद = ऋग्वेद

नियम 2. -यदि वर्णों के प्रथम वर्ण (‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’) के बाद ‘न्’ या ‘म्’ वर्ण / व्यंजन आए तो उनके (‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’) स्थान पर क्रमश: उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है।

उदाहरण-

उत् + नयन = उन्नयनषट् + मार्ग = षणमार्ग
उत् + नायक = उन्नायकषट् + मास = षण्मास
उत् + नति – उन्नतिषट् + मुख = षण्मुख
उत् + मत्त = उन्मत्तसत् + मार्ग = सन्मार्ग
उत् + मेष = उन्मेषसत् + नारी = सन्नारी
तत् + नाम = तन्नामसत् + मित्र = सन्मित्र
तत् + मय = तन्मयसत् + मति = सन्मति
वाक् + मय = वाङ्मयजगत् + नाथ = जगन्नाथ
चित् + मय = चिन्मयदिक् + नाग = दिङ्नाग
अप् + मय = अम्मय 

नियम 3. -यदि ‘म्’ व्यंजन के बाद कोई स्पर्श व्यंजन वर्ण आए, तो ‘म्’ का अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के वर्ग का पाँचवाँ वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) हो जाता है।

उदाहरण-

अहम् + कार = अहंकारपम् + चम = पंचम
किम् + चित = किंचितसम् + गम = संगम
सम् + कल्प = संकल्पसम् + पूर्ण = सम्पूर्ण
सम् + गत = संगतसम् + बंध = संबंध
सम् + जय = संजयसम् + ध्या = संध्या
सम् + कीर्ण = संकीर्णसम् + तोष = संतोष
सम् + चित = संचितसम् + घर्ष = संघर्ष
सम् + जीवनी = संजीवनीपरम + तु = परंतु
सम् + चय = संचय 

नियम 4. यदि ‘म्’ व्यंजन के बाद ‘य्’, ‘र्’, ‘ल्’, ‘व्’, ‘स्’, ‘श्’, ‘ह्’ आए, तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है।

उदाहरण-

सम् + रक्षक = संरक्षकसम् + हार = संहार
सम् + रक्षा = संरक्षासम् + शय = संशय
सम् + रक्षण = संरक्षणसम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत = संवतसम् + योग = संयोग
सम् + यम = संयमसम् + वर्धन = संवर्धन
सम् + विधान = संविधानसम् + वहन = संवहन
सम् + स्मरण = संस्मरणसम् + युक्त = संयुक्त
Sandhi Ki Paribhasha

विसर्ग सन्धि-

  • विसर्गों का प्रयोग संस्कृत को छोड़कर संसार की किसी भी भाषा में नहीं होता है।
  • हिन्दी में भी विसर्गों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है।
  • कुछ इने-गिने विसर्गयुक्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं;

उदाहरण-

Sandhi Ki Paribhasha

अत:, पुनः, प्रायः, शनैः शनैः आदि

  • हिन्दी में मनः, तेजः, आयुः, हरिः के स्थान पर मन, तेज, आयु, हरि शब्द चलते हैं, इसलिए यहाँ विसर्ग सन्धि का प्रश्न ही नहीं उठता।
  • फिर भी हिन्दी पर संस्कृत का सबसे अधिक प्रभाव है।
  • संस्कृत के अधिकांश विधि निषेध हिन्दी में प्रचलित हैं।
  • विसर्ग सन्धि के ज्ञान के अभाव में हम वर्तनी की अशुद्धियों से मुक्त नहीं हो सकते।
  • विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के संयोग से जो विकार होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं।

(a) यदि विसर्ग के आगे श, ष, स आए तो वह क्रमशः श्, ए, स्, में बदल जाता है;

उदाहरण-

  • नि: + संग = निस्संग
  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
  • निः + सन्देह = निस्सन्देह
  • निः + शब्द = निश्शब्द
  • निः + शंक = निश्शंक

(b) यदि विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में र आए तो विसर्ग का लोप हो जाएगा और इ तथा उ दीर्घ ई, ऊ में बदल जाएँगे.

जैसे-

  • निः + रस = नीरस
  • निः + रव = नीरव
  • निः + रोग = नीरोग

(c) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’, ‘ट-ठ’ तथा ‘त-थ’ आए तो विसर्ग क्रमशः ‘श्’, ‘ष’, ‘स्’ में बदल जाते हैं;

उदाहरण-

  • निः + ठुर = निष्ठुर
  • दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
  • धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
  • निः + तार = निस्तार
  • निः + छल = निश्छल

(d) विसर्ग के बाद क, ख, प, फ रहने पर विसर्ग में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता;

उदाहरण-

  • प्रात: + काल = प्रात:काल
  • पयः + पान = पयःपान
  • अन्तः + करण = अन्तःकरण

(e) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग ‘र’ में बदल जाता है;

उदाहरण-

  • निः + गुण = निर्गुण
  • दुः + बोध = दुर्बोध
  • निः + झर = निर्झर
  • नि: + आधार = निराधार
  • निः + धन = निर्धन
  • दुः + निवार = दुर्निवार

(f) यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए और बाद में कोई भी स्वर आए तो भी विसर्ग र् में बदल जाता है;

उदाहरण-

  • निः + अर्थक = निरर्थक
  • निः + ईह = निरीह
  • नि: + आशा = निराशा
  • निः + उपाय = निरुपाय

(g) यदि विसर्ग से पहले अ आए और बाद में य, र, ल, व या ह आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है;

उदाहरण-

  • मनः + रम = मनोरम
  • मन: + रथ = मनोरथ
  • पुरः + हित = पुरोहित
  • मनः + विकार = मनोविकार

(h) यदि विसर्ग से पहले इ या उ आए और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है;

उदाहरण-

  • निः + कपट = निष्कपट
  • निः + फल = निष्फल
  • नि: + करुण = निष्करुण
  • निः + पाप = निष्पाप
  • निः + काम = निष्काम
  • निः + कर्म = निष्कर्म

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निकर्ष-

जैसा की आज हमने आपको Sandhi Ki Paribhasha, संधि की परिभाषा, sandhi ke udaharan के बारे में आपको बताया है.

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