आज हम जानेगे की Matrik Chhand Ki Paribhasha In Hindi | मात्रिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित | मात्रिक छंद का अर्थ | मात्रिक छंद क्या है इसके बारे में आपको हम इसमें बताने वाले है.
Matrik Chhand Ki Paribhasha- मात्रिक छंद की परिभाषा
अब आपको यंहा पर हम Matrik Chhand Kya Hai, मात्रिक छंद किसे कहते है, Defination Of Matrik Chhand In Hindi, Matrik Chhand Ke Udaharan बताने वाले है-
मात्रिक छंद के पद में वर्णों की संख्या और वर्णों का क्रम निर्धारित नहीं रहता है परंतु मात्रा की संख्या निर्धारित रहती है।
मात्रिक छंदों की लय भी बहुत मधुर तथा लोचदार होती है। यह लय केवल मात्राओं के बंधन से नहीं आती बल्कि उन मात्राओं को भी एक निश्चित क्रम में सजाने से प्राप्त होती है इसे मात्रिक छंद कहते है.
मात्राओं के इस परिभाषित क्रम का आधार कुल संयोजन है।
कलस के अलावा कई मात्रिक छंद भी वर्ण-गुच्छक पर आधारित हैं या कई छंदों के अंत में वर्ण-गुच्छक भी हो सकता है।
वर्ण गुच्छक में लघु गुरु का क्रम निश्चित रहता है, लेकिन मातृक छंद में गुरु को दो लघु में विभाजित किया जा सकता है, जबकि वर्ण गुच्छक में यह लचीलापन नहीं होता है।
मात्रिक छंद का उदाहरण-
उदाहरण –
“भोले की महिमा है न्यारी।
औघड़ दानी भव-भय हारी।।
शंकर काशी के तुम नाथा।
रखो शीश पर हे प्रभु हाथा।।”
इस उदाहरण देखें जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा आवश्यक है।
इसीलिए छंद के चरणों में वर्ण संख्या क्रमशः 9, 11, 10, 11 है। पर मात्रा हर चरण में 16 एक समान है और लय सधी हुई है।
मात्रिक छंद के प्रकार –
प्रति पद मात्रा संख्या के आधार पर मात्रिक छंदों की दो श्रेणियाँ हैं-
सामान्य मात्रिक छंद-
32 मात्रा प्रति पद तक के छंद इस श्रेणी में आते हैं।
दण्डक मात्रिक छंद –
प्रति पद 32 मात्रा से अधिक के छंद इस श्रेणी में आते हैं।
जैसे – झूलना (37 मात्रा), हरिप्रिया (46 मात्रा) आदि।
स्वरूप के आधार पर मात्रिक छंद 3 प्रकार के होते हैं-
सम मात्रिक छंद:-
सम मात्रिक छंद के सभी पदों में मात्राओं की संख्या समान होती है उन्हें सम मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे-चौपाई, रोला, हरिगीतिका, वीर, अहीर, तोमर, मानव, पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, दिक्पाल, रूपमाला, सरसी, सार, गीतिका और ताटंक आदि।
सम मात्रिक छंद के प्रकार :-
- अहीर (11 मात्रा)
- तोमर (12 मात्रा)
- मानव (14 मात्रा)
- अरिल्ल, पद्धरि/पद्धटिका,चौपाई (सभी 16 मात्रा)
- पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा)
- राधिका (22 मात्रा)
- रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा)
- गीतिका (26 मात्रा)
- सरसी (27 मात्रा)
- सार (28 मात्रा)
- हरिगीतिका (28 मात्रा)
- ताटंक (30 मात्रा)
- वीर या आल्हा (31 मात्रा)
अर्धसम मात्रिक छंद:-
अर्धसम मात्रिक छंद का पहला और तीसरा चरण तथा दुसरा और चौथा चरण आपस में एक समान हो, वह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है, परंतु पहला और दूसरा चरण एक दूसरे से लक्षण में अलग रहते हैं।
जैसे – दोहा छंद के दल के दोनों चरण क्रमशः 13 और 11 मात्रा के होते हैं। इस श्रेणी के अन्य छंद सोरठा, बरवै, उल्लाला आदि हैं। साधारणतया ये छंद दो दल (पंक्ति) में लिखे जाते हैं।
अर्धसम मात्रिक छंद के प्रकार :-
- बरवै (विषम चरण में- 12 मात्रा, सम चरण में- 7 मात्रा)
- दोहा (विषम- 13, सम- 11)
- सोरठा (दोहा का उल्टा)
- उल्लाला (विषम-15, सम-13)।
विषम मात्रिक छंद:-
विषम मात्रिक छंद के पदों में असमानता विद्यमान हो वे विषम मात्रिक छंद की श्रेणी में आते हैं।
जैसे- कुण्डलिया (दोहा + रोला) , छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि। साधारणतया ऐसे छंद दो या दो से अधिक छंदों के सम्मिश्रण से बनते हैं।
विषम मात्रिक छंद के प्रकार :-
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चौपाई छंद | अलंकार की परिभाषा |
निकर्ष-
जैसा की आज हमने आपको Matrik Chhand Ki Paribhasha, मात्रिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित के बारे में आपको बताया है.
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