आज हम जानेंगे Kala Ki Paribhasha in hindi | कला की परिभाषा | Kala Defination In Hindi | कला का अर्थ | Kala Ke prakar |आपको बताने वाले है.
कला का अर्थ –
कला संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति कल धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है:- प्रेरित करना।
कला न ज्ञान हैं, न शिल्प हैं, न ही विद्या हैं, बल्कि जिसके द्वारा हमारी आत्म परमानन्द का अनुभव करती हैं, वही कला हैं।
कला संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति कल धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है:- प्रेरित करना।
कला शब्द का अर्थ ‘सुन्दर’ ‘कोमल’ ‘मधुर’ या ‘सुख’ लाने वाला मानते हैं। कुछ इसे ‘कल्’ धातु अर्थात् (शब्द करना, गाना-बजना, गिनना से संबंधित मानते हैं।
Kala Ki Paribhasha–
आज हम जानेंगे की kala Kya Hai | कला किसे कहते है | Definition Of kala In Hindi के बारे में बताने वाले है-
किसी भी कार्य को पूरी कुशलता या निपुणता से सम्पन्न करना कला कहलाता है।
जैसे:- मूर्ति बनाना, चित्र बनाना, भवन या मंदिर बनाना, गीत गाना, काव्य रचना, आदि।
कला शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ऋग्वेद में हुआ है।
कला न ज्ञान हैं, न शिल्प हैं, न ही विद्या हैं, बल्कि जिसके द्वारा हमारी आत्म परमानन्द का अनुभव करती हैं, वही कला हैं। कुछ लोग कला शब्द का अर्थ ‘सुन्दर’ ‘कोमल’ ‘मधुर’ या ‘सुख’ लाने वाला मानते हैं।
कला की परिभाषा विद्वानों द्वारा-
एक साहित्यिक उक्ति के द्वारा,” प्राण तत्व ‘रस’ से परिपूर्ण रचना ही कला हैं।”
जयशंकर प्रसाद के द्वारा,” ईश्वर की कर्तव्य शक्ति का संकुचित रूप जो हमको भाव-बोध के लिये मिलता हैं- कला हैं।”
प्रसादजी के अनुसार – ‘‘ईश्वर की कृतज्ञ-शक्ति का मानव द्वारा शारीरिक तथा मानसिक कौशलपूर्ण निर्माण, कला है
महात्मा गाँधी कहा है की “ कला आत्मा का ईश्वरीय संगीत हैं।”
मोहनलाल महतो वियोगी ने कहा है, ‘‘यह समस्त विश्व ही कला है जो कुछ देखने, सुनने तथा अनुभव करने में आता है, कला है.
अरस्तू उसे अनुकरण कहते हैं।
हीगेल ने कला को आदि भौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम माना है।
फ्रायड ने कहा है की ,” कला में मानव अपनी दमित वासनाओं तथा कुण्ठाओं की अभिव्यक्ति करता हैं।”
रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा,” कला में मनुष्य स्वयं अपनी अभिव्यक्त करता हैं।”
डाॅ. भोला शंकर तिवारी कहा है की ,” कला में मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता हैं।”
मैकविल जे0 हर्सकोवित्स ने कहा है की , ‘‘योग्यता द्वारा सम्पादित जीवन के किसी भी उस अलंकरण को जिसे वर्णनीय रूप प्राप्त हो ‘कला’ है।
रस्किन के द्वारा,” कला, ईश्वरीय कृति के प्रति मानव के आलाद की अभिव्यक्ति हैं।”
टाॅलस्टाय कहा है की ,” कला एक मानवीय क्रिया हैं जिसमें एक व्यक्ति जागरूक अवस्था में वाद्य प्रतीकों के माध्यम से, अपनी उन भावनाओं को जिनमें वह जी रहा होता हैं, दूसरों को संचारित करता है तथा दूसरे व्यक्ति भी उन भावनाओं से प्रभावित होते हैं एवं उनका अनुभव करते हैं।”
शापेनहावर के द्वारा,” सृष्टि एक दिव्य रचना है और कला पवित्रता की अभिव्यक्ति हैं।”
माइकेल एन्जेलो के द्वारा- ‘‘सच्ची कलाकृति दिव्यता पूर्ण प्रतिकृति होती है
एरिस्टाटिल के द्वारा,” कला अनुकरणीय हैं।”
बेनी दीती क्रोचे के अनुसार,” कला वही है जैसा हर एक उसे जानता हैं।”
प्लेटो के कहा है की,” कला सत्य की अनुकृति हैं।”
कला के भेद- kala ke prakar –
अब आपको हम यंहा पर kala ke prakar कितने है उनके बारे में आपको बताने वाले है जो इस प्रकार से है-
1) संगीत कला-
वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला की अपेक्षा संगीत कला अधिक उत्कृष्ट रूप में देखी जा सकती है, जिसका आधार नाद या स्वर होता है। इस कला के द्वारा व्यक्त भाव अधिक सूक्ष्म तथा स्पष्ट होते हैं।
संगीत कला का विशेषज्ञ अपनी कला से श्रोता को रुला भी सकता है और हँसा भी इसमें पूर्वोक्त कलाओं की भीति गतिमान नहीं होते हैं।
2) नृत्य कला-
नृत्यकला की गणना भी कला के अच्छे रूप में होती है। नृत्य के द्वारा कला की उन्नति होती है।
3) कविता या काव्यकला-
काव्य का स्थान ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। इसके आधार शब्द और अर्थ हैं। जहाँ संगीत कला में केवल स्वरों का प्रयोग होता है, वहाँ काव्य कला में स्थर और व्यंजन दोनों ही प्रयुक्त होते हैं।
संगीत विशेषज्ञ एक दो स्वरों के आरोह और अवरोह के द्वारा श्रोता को भाव-विभोर कर सकता है किन्तु यह भाव विभोर की स्थिति स्थायी नहीं होती, जबकि कवि व्यंजनों और स्वरों के प्रयोग तथा उनके अर्थ के द्वारा चिरस्थायी प्रभाव डाल सकता है।
4) मूर्तिकला-
वास्तु कला के मुकाबले में मूर्तिकला अधिक विकसित एवं उन्नत कला है। इसमें रूप, रंग तथा आकार होता है। लम्बाई, चौडाई और मोटाई भी होती है।
यह कला वास्तु की अपेक्षा अधिक रूप में उत्कृष्ट है क्योंकि इसके साधन अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म है, यह कला वास्तुकला की अपेक्षा उत्कृष्ट मनोभावों को व्यक्त कर सकती है।
5) वास्तुकला-
वास्तुकला को स्थापत्य कला के नाम से भी पुकारते हैं। इस कला के अन्तर्गत भवन निर्माण मंदिर, मस्जिद, बांध, पुल आदि के निर्माण का कार्य होता है।
वास्तुकला के आधार के रूप में इंट पत्थर, सीमेंट लोहा, लकड़ी आदि है और साधन के रूप में कभी वसूली कुदाल आदि। वास्तुकला में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई तीन तत्व होते हैं।
वास्तुकला द्वारा व्यक्त भावों की अपेक्षा अन्य कलाओं द्वारा व्यक्त भाव अधिक आकर्षक होते हैं। सूक्ष्मता उनकी विशेषता है।
6) चित्रकला या रंजन कला –
मूर्तिकला के मुकाबले में चित्रकला अधिक उत्कृष्ट तथा कला है। यद्यपि वास्तु तथा मूर्तिकला के समान रूप रंग और आकार इसमें होता है किन्तु इस कला के मान तीन-लम्बाई चौड़ाई और मोटाई न होकर केवल दो लम्बाई और चौड़ाई ही होते हैं रंग बुश के साधन है। वास्तु एवं मूर्ति को अपेक्षा चित्रकला मनोभावों को अधिक स्पष्ट करती हैं।
कला की परिभाषा पीडीऍफ़ हिंदी में –
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Natak Ki Paribhasha, नाटक की परिभाषा
निकर्ष-
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