Vikas Ki Paribhasha Pdf, विकास की परिभाषा और विशेषताएं

आज हम जानेंगे Vikas Ki Paribhasha In Hindi Pdf | विकास की परिभाषा | Vikas Definition In Hindi | विकास का अर्थ | | विकास की विशेषताएं आपको बताने वाले है.

विकास का अर्थ-

विकास का अर्थ है- वे व्यवस्थित तथा समानुगत परिवर्तन, जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक होते हैं। यहाँ पर व्यवस्थित का अर्थ है-क्रमबद्धता,

अर्थात् शारीरिक और मानसिक परिवर्तन में कोई-न-कोई क्रम अवश्य होता है और प्रत्येक परिवर्तन अपने पूर्व परिवर्तन पर निर्भर रहता है प्रायः विकास का अर्थ आयु में बड़े होने या कद में बड़े होने से लगाया जाता है, परन्तु विकास का यह अर्थ भ्रामक है।

Vikas Ki Paribhasha-विकास की परिभाषा

अब आपको हम यंहा पर विकास क्या है, Vikas Ki Paribhasha Bataiye, विकास किसे कहते है, विकास और वृद्धि में अन्तर के बारे में बताने वाले है.

मुनरो ने विकास के बारे में कहा है की – परिवर्तन श्रृंखला की वह प्रणाली, जिसमें बच्चा भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था की अवस्था तक गुजरता है विकास कहलाती है।”

फ्रांसिस एफ. पावर्स के अनुसार – सामाजिक दायित्व को ध्यान मे रखकर व्यक्ति के सत् कार्यों, उत्तरोत्तर विकास और उन सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप व्यवस्थित चरित्र का निर्माण ही सामाजिक अभिवृद्धि है।

इंगलिश के द्वारा विकास की परिभाषा – विकास प्राणी की शरीर अवस्था में एक लम्बे समय तक होने वाले लगातार परिवर्तन का एक क्रम है। यह विशेषतया ऐसा परिवर्तन है, जिसके कारण जन्म से लेकर परिपक्वता और मृत्यु तक प्राणी में स्थायी परिवर्तन होते हैं।

इरा. जी. गोर्डन ने विकास के बारे में – विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर उस समय तक चलती रहती है जब तक कि वह पूर्ण विकास को प्राप्त नही कर लेता हैं।”

स्टैट के अनुसार – विकास समय के साथ होने वाला परिवर्तन है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रेक्षण प्रतिफलों के अध्ययन के माध्यम से किया जा सकता है।

स्किनर के द्वारा विकास एक – विकास जीव और उसके वातावरण की अंत:क्रिया का प्रतिफल हैं।”

हरलाॅक ने विकास के बारे में कहा है की – अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं हैं। इसके बजाय इसमें परिपक्वावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता हैं। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रकट होती हैं।”

लालबार्बा के द्वारा परिभाषित किया है की – विकास का अर्थ परिपक्वता से संबंधित परिवर्तनों से हैं जो मानव के जीवन में समय के साथ घटित होते रहते हैं।”

जेम्स ड्रेवर ने कहा है की – विकास वह दशा है, जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में व्यक्ति में निरन्तर प्रकट होती है अर्थात् यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी व्यक्ति में भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलता है और विकासतन्त्र को नियन्त्रण में रखता है। यह दशा प्रगति का मापदण्ड होती है तथा इसका प्रारम्भ शून्य से होता है।

सोरेन्सन के द्वारा – विकास का अर्थ परिपक्वता और कार्यपरक सुधार की व्यवस्था से है जिसका संबंध गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तनों से हैं।

Vikas Ki Paribhasha

विकास की विशेषताएं –

निरंतर प्रक्रिया-

विकास एक धीमी गति से चलने वाली प्रक्रिया है। विकास का यह क्रम मानव के गर्भावस्था से लेकर मृत युवक तक रहता है। विकास की प्रक्रिया में सामुहिक मोबाइल किराए पर नहीं रुकती।

सहज क्रिया अभिगमन-

वाटसन का कहना है कि सभी बालक जनन हो ते हैं। उनकी निश्चित शारीरिक रचना होती है, उनमें कुछ सहज क्रियाएँ होती हैं और तीन संवेग होम, भय और क्रोभ।

इनमें से कुछ अतिरिक्त कुछ अग्रिम मौलिक प्रवृत्तियाँ हैं। पर्यावरण के अनुसार बालक अपनी क्रिया प्रयोग करता है और ये ही उनकी अनुकृति है। यह सहज क्रिया ही बच्चों के विकास की ओर संकेत करती है।

व्यापक अर्थ-

वृद्धि की तुलना मे विकास अधिक व्यापक है। क्योंकि यह कुछ समय के लिए नहीं होता है, क्योंकि प्रत्येक मोड़ पर मानव विकास संभव है। इसलिए इसे बहुत व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।

आंतरिक प्रक्रिया-

इसका माप लेना बहुत मुश्किल है। जैसे– बच्चे की वृद्धि के कारण उसकी जो आंतरिक कमजोरी होती है उसे देखा नहीं जा सकता।

निश्चित क्रम-

विकास की एक निश्चित दिशा होती है और एक निश्चित क्रम होता है। इसे हम विकास की अवस्थाएँ भी कहते हैं। शुशावस्था, बालावस्था, अविश्वास, युवावस्था, मानव विकास की अद्भुत अवस्थाएँ होती हैं।

मात्रात्मक एवं गुणात्मक-

बच्चों के शारीरिक विकास के साथ ही उनका मानसिक विकास भी होता है। उदाहरण के लिए बच्चों की आयु में वृद्धि के साथ-साथ उनकी सोच और मानसिकता के गुण भी जन्म लेते हैं और बढ़ते हैं। मूलतः विकास गुणात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार का होता है।

पूर्वसूची-

विकास एक सतत प्रक्रिया है। विकास की प्रत्येक अवस्था को प्रभावित करता है। मूलतः पूर्व अवस्था के द्वारा आगामी अवस्था का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए मंदबुद्धि और तीव्र बुद्धि चैट रॉन का अध्ययन बाल्यावस्था से ही लग जाता है।

विकास मे विशिष्टता –

विकास की प्रत्येक अवस्था मे कुछ संकुलों का विकास होता है। फील्डमैने के अनुसार,” मानव जीवन अनेक अवस्थाओं मे गुजरता है,

मानव जीवन गर्भीय-अवस्था से किसी भी अवस्था मे कम नही है। प्रत्येक अवस्था मे प्रभावशाली विशेषताएं उभरती हैं, उनमे विशिष्टतायें होती हैं। इसमें एकता तथा वैशिष्ट्य पाया जाता है।

विकास के उद्देश्य-

विकास की परिभाषा

विकास और वृद्धि में अन्तर-

विकास की विशेषताएं

Vikas Ki Paribhasha pdf Download-

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निकर्ष-

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