आज हम जानेगे की Samaj Ki Paribhasha, समाज की परिभाषा क्या है, Ek Samaj Ki Paribhasha और समाज किसे कहते है इसके बारे में आपको बताने वाले है.
अब आपको हम समाज की परिभाषा और उसके प्रकार, samaj ka paribhasha | समाज का अर्थ | समाज किसे कहते है | समाज क्या है | Samaj defintion in hindi बताने वाले है-
Samaj Ki Paribhasha –
समाज में व्यक्तियों के मध्य पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों के व्यवस्थित स्वरूप को ‘समाज’ कहते हैं।
समाज से आशय, व्यक्तियों के एक समूह से नही बल्कि उनके बीच संबंधों की व्यवस्था से हैं।
समाज शब्द संस्कृत के दो शब्दों सम् एवं अज से बना है। सम् का अर्थ है इकट्ठा व एक साथ अज का अर्थ है साथ रहना
जैसे -आर्य समाज, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, हिन्दू समाज, जैन समाज, विद्यार्थी समाज, महिला समाज आदि।
समाज की परिभाषा विभिन्न विद्वानों के द्वारा-
हेनकीन्स के अनुसार- समाज वह है जो पुरूषों, स्त्रियों तथा बालकों का कोई स्थायी अथवा अविराम समूह है जो कि अपने सांस्कृतिक स्तर पर स्वतंत्र रूप से प्रजाति की उत्पत्ति एवं उसके पोषण की प्रक्रियाओं का प्रबन्ध करने मे सक्षम होता हैं।”
पारसन्स के द्वारा- समाज को उन मानवीय संबंधों की जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो साधन और साध्य के रूप में की गयी क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं, चाहे वे यथार्थ हों या केवल प्रतीकात्मक।”
रायट के अनुसार – यह व्यक्तियों का एक समूह नही हैं, अपितु विभिन्न समूहों के व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों की व्यवस्था हैं।”
मैकाइवर व पेज ने कहा है की – समाज चलनों व प्रणालियों की, सत्ता व पारस्परिक सहयोग की, अनेक समूहों व भागों कि, मानव व्यवहार के नियंत्रणों और स्वाधीनताओं कि एक व्यवस्था हैं।”
गिडिंग्स के अनुसार – समाज स्वयं संघ है वह एक संगठन और व्यवहारों का योग है, जिसमे सहयोग देने वाले एक-दूसरे से सम्बंधित होते हैं।”
समाज में होने वाला कार्य-
- समाजिक संबंध स्थापित होते हैं |
- यहां लोगों के जीवन पर प्रभाव डालता है |
- यह भोतिक और सामाजिक उन्नति करता है
- अनेक संगठनों का निर्माण होता है |
- चेतना और क्रिया होती है |
- परंपराओं का पालन किया जाता है |
समाज के प्रकार-
समाजों के चार प्रकार बताए हैं-
- 1-सरल समाज
- 2-मिश्रित समाज
- 3-दोहरे मिश्रित समाज
- 4-तिहरे मिश्रित समाज
समाज की विशेषता :-
1. समाज अमूर्त है – समाज व्यक्तियों का समूह ना होकर संबंधों का जाल है जिस प्रकार मानव जीवन एक वस्तु ना होकर जीवित रहने की एक प्रक्रिया है उसी प्रकार समाज मौत ना होकर संबंध स्थापित करने की अमूर्त प्रक्रिया है।
3- समाज परिवर्तनशील एवं जटिल व्यवस्था हैं – समाज की एक विशेषता यह भी है कि समाज परिवर्तनशील और जटिल होता हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है समाज भी परिवर्तनशील है।
मैकाइवर और पेज के अनुसार– समाज सदैव परिवर्तित होता रहता हैं समाज मे अनेकों कारकों जैसे आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि के कारण परिवर्तन होता हैं।
6- समानता तथा भिन्नता का पूञ्ज – समाज निर्माण उन व्यक्तियों से लागू होगा जो कुछ दशकों में एक दूसरे के समान है और सामाजिक समस्या के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हैं.
7- समाज निरंतर बना रहता हैं– समाज चूंकि व्यक्तियों का समूह नही वरन् व्यक्तियों से संबंधों की व्यवस्था है इसलिए कोई अथवा कुछ व्यक्ति या पीढ़ी रहे या ऑ रहे समाज बना रहता हैं। आशय सिर्फ इतना है कि व्यक्ति मरता अवश्य है किन्तु समाज मे व्यक्तियों की निरंतरता बनी रहती है।
8- अन्योन्य आश्रिता – समाज का निर्माण पहले वाले सभी संबंध एक-दूसरे के पृथक नहीं रह सकते हैं परस्पर घर घनिष्ठतम संबंधित होते हैं।
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FAQ-
समाज की परिभाषा के दो प्रकार क्या हैं?
समाज की परिभाषा के दो प्रकार –संरचनात्मक और अंतःक्रियात्मक
समाज का दूसरा अर्थ क्या है?
समाज का दूसरा अर्थ सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था, जाल अथवा ताने-बाने से है इससे किसी समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक अंर्तसंबंधों की जटिलता का बोध होता है।
समाज का क्या महत्व है?
समाज मानव के विकास के लिए कार्य करता है। यह ऐसी संस्था है, जो मानव द्वारा निर्मित है और मानव ही इसके अंग है। यदि इस पृथ्वी में मानव जाति का अंश न रहे, तो समाज भी नहीं रहेगा। दोनों सदियों से एक-दूसरे में मिले हुए कार्य करते आ रहे हैं।
समाज का आधार क्या है?
समाज के आधार: वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, धर्म एवं कर्म का विस्तृत अध्ययन किया गया हैं । इस इकाई का प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज के आधार : वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, धर्म एवं कर्म तथा समाज में उनके महत्व को समझना है।
समाज और संस्कृति क्या है?
समाज और संस्कृत का तात्पर्य समान परंपराओं, हितों और संस्थाओं के साथ एक समुदाय में रहने वाले लोगों के समूह से है। संस्कृति का तात्पर्य समाज में पाए जाने वाले मानदंडों और सामाजिक व्यवहार जैसे रीति-रिवाजों, आदतों, विश्वासों और कानूनों से है
समाज के तत्व क्या है?
समाज के तत्व चार शब्द – न्याय, स्वतंत्रता, बंधुता और समानता ऐसे समाज के निर्माण का सपना बन जाते है.
समाज किससे बनता है?
समाज उन लोगों के समूहों द्वारा बनाई जाती है जो अपने सामान्य हितों को बढ़ावा देने के लिए इसमें शामिल होना चाहते हैं
निकर्ष-
जैसा की आज हमने आपको समाज की परिभाषा जानकारी के बारे में आपको बताया है.
इसकी सारी प्रोसेस स्टेप बाई स्टेप बताई है उसे आप फोलो करते जाओ निश्चित ही आपकी समस्या का समाधान होगा.
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