आज हम जानेगे की Vyanjan Ki Paribhasha In Hindi, व्यंजन की परिभाषा | व्यंजन के प्रकार | व्यंजन का अर्थ | व्यंजन किसे कहते है | व्यंजन क्या है | के बारे आपको बताने वाले है.
vyanjan Ki Paribhasha-
व्यंजन वर्णों को बोलते समय स्वर वर्णों की सहायता लेनी पड़ती है प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ स्वर लगा होता है। ‘अ’ स्वर के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता है।
प्रत्येक व्यंजन वर्ण के उच्चारण में एक स्वर वर्ण होता है स्वरों के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं किया जा सकता तो इसे व्यंजन कहलाता है.
अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस ‘कण्ठ, तालु’ आदि स्थानों से रुककर निकलती है, उन्हें ‘व्यंजन’ कहते है।
व्यज्यते वर्णान्तर-संयोगेन् द्योत्यते ध्वनिविशेशो येन तद् व्यञ्जनम्’ अर्थात ऐसे वर्ण जो स्वयं उच्चारित न हो कर स्वर वर्णों की सहायता से उच्चारित होते हैं व्यंजन कहलाते हैं।
हिंदी वर्णमाला में कुल 45 व्यंजन होते है. मूल व्यंजन वर्णों की संख्या 33 मानी जाती है परंतु, द्विगुण व्यंजनों (ड़ तथा ढ़) को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है।
जैसे :-
- क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़)
- च, छ, ज, झ, ञ (ज़)
- ट, ठ, ड, ढ, ण, (ड़, ढ़)
- त, थ, द, ध, न
- प, फ, ब, भ, म (फ़)
- य, र, ल, व
- श, श़, ष, स, ह
- संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
व्यंजन के प्रकार–
- उच्चारण के स्थान के आधार पर
- अध्ययन के आधार पर
- श्वास के आधार पर
- स्वर तंत्रिकाओं के आधार पर
अध्ययन के आधार पर–
(1) स्पर्श व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न-किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं।
क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। इन्हें पाँच-पाँच के वर्गों में विभाजित किया गया है। अत : इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहते हैं;
जैसे — क से ङ तक क वर्ग, च से ञ तक च वर्ग, ट से ण तक ट वर्ग, त से न तक त वर्ग, और प से म तक प वर्ग।
(2) ऊष्म व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्प व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे- श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं।
(3) उत्क्षिप्त व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।
जैसे – ड़, ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।
(4) संयुक्त व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं;
जैसे = क् + ष = क्ष (उच्चारण की दृष्टि से क् + छ = क्ष)
त् + र = त्र
ज् + ञ = ज्ञ (उच्चारण की दृष्टि से ग् + य = ज्ञ)
श् + र = श्र
(5) अनुनासिक व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, अनुनासिक व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे- ङ, ञ, ण, न और म अनुनासिक व्यंजन हैं।
(6) अन्तःस्थ व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है फिर भी वायु स्वरों की भाँति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अन्तःस्थ व्यंजन कहलाती है।
जैसे- य, र, ल, व अन्तःस्थ व्यंजन हैं।
स्वर तंत्रिकाओं के आधार पर –
- घोष व्यंजन
- अघोष व्यंजन
घोष व्यंजन –
ऐसे वर्ण जिनको उच्चारित करने के दौरान स्वर तंत्रिका में कंपन उत्पन्न होती है, वे घोष व्यंजन या सघोष व्यंजन कहा जाता है।
घोष अथवा सघोष व्यंजन में सभी स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
तथा वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग के 3, 4, और 5 व्यंजन ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म तथा अन्तस्थ व्यंजन य, र, ल, व तथा उष्म व्यंजन ह शामिल हैं।
अघोष व्यंजन-
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता, वे अघोष कहलाते हैं। अघोष व्यंजन के अंतर्गत प्रत्येक वर्ण वर्ग का पहला और दूसरा व्यंजन क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ तथा उष्म व्यंजन के श, ष, स आते है।
उच्चारण के स्थान के आधार पर–
उच्चारण के स्थान का अर्थ है, वर्णों के उच्चारण के दौरान मुख के अलग-अलग हिस्सों या अंगों का प्रयोग होना।
जैसे – कंठ, तालु, दांत, नासिक आदि।
हिंदी व्याकरण में व्यंजनों को उच्चारण के स्थान के आधार पर सात भागों में बांटा गया है।
व्यंजनों के भेद | उच्चारण स्थान | व्यंजन | |
1 | कण्ठ्य व्यंजन | कंठ | क, ख, ग, घ और ङ |
2 | तालव्य व्यंजन | तालु | च, छ, ज, झ, ञ, श और य |
3 | मूर्धन्य व्यंजन | मूर्धा | ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, र और ष |
4 | दन्त्य व्यंजन | दन्त | त, थ, द, ध, न, ल और स |
5 | ओष्ठ्य व्यंजन | ओष्ठ | प, फ, ब, भ और म |
6 | दंतोष्ठ्य व्यंजन | दन्त और ओष्ठ | व |
7 | अलिजिह्वा व्यंजन | स्वर यंत्र | ह |
श्वास के आधार पर –
- अल्पप्राण
- महाप्राण
अल्पप्राण –
अल्पप्राण व्यञ्जन वह व्यञ्जन होते हैं जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास (अर्थात प्राण वायु) की मात्रा कम प्रयोग होती है।
अल्प्राण व्यंजन के अंतर्गत हिंदी वर्णमाला के 20 वर्णों को शामिल किया गया है।
जैसे – क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल, व, ड़।
महाप्राण –
ऐसे व्यञ्जन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है, उन्हें महाप्राण व्यञ्जन कहते हैं।
महाप्राण व्यंजनों में हिंदी वर्णमाला के कुल 14 वर्ण रखे जाते है।
जैसे – ख, घ, छ, झ, ठ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह तथा ढ़।
व्यंजन की परिभाषा pdf-
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निकर्ष-
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