Shant Ras Ki Paribhasha, शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित

आज हम जानेगे की Shant Ras Ki Paribhasha In Hindi, शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित, Shant Ras Ke Udaharan | Shant Ras defintion in hindi में आपको हम इसमें बताने वाले है.

Shant Ras Ki Paribhasha-

आज हम जानेगे की शांत रस किसे कहते है, shant ras kya hai, शांत रस का अर्थ क्या है और definition of Shant Ras in hindi, shant ras in hindi के बारे में बताने वाले है.

शांत रस वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न हो वहाँ शांत रस की उत्पत्ति होती हैं।

जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं।

अथवा-

शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित
शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित

शांत रस के भेद- shant ras ke prakar

श्रृंगारादि की तरह शान्त रस के भेद-प्रभेद करने की ओर आचार्यों का ध्यान प्राय: नहीं गया है। केवल ‘रस-कलिका’ में रुद्रभट्ट द्वारा चार भेद किये गए हैं –

1.वैराग्य-

ऐसे में उसे उसके सगे संबंधी उसके परिचित चरित्र और गैर लोगों में को अंतर महसूस होना बंद हो जाता है। अब ना उसे कोई दुःख उग्र बना सकता है और ना ही कोई ख़ुशी उसे खुश कर सकती है।

2.दोष-विग्रह-

दोष-विग्रह एक ऐसी स्थिति है कि इसमें लक्षित व्यक्ति का व्यक्तित्व दोषरहित होने लगता है तथा साथ ही उसे किसी भी परिस्थिति में कोई भी दोष महसूस नहीं होता या ये कहिए कि उसे किसी से कोई भी शिकायत नहीं होती।

3.सन्तोष-

यह एक ऐसी स्थिती है, जिसमें लक्षित व्यक्ति संतोष की अनवरत व सतत स्थिती में रहता है।

4.तत्त्व-साक्षात्कार, (जो कि मान्य नहीं हुए)।

शांत रस के अवयव –

शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित
शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित

शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित- shant ras ke udaharan-

उदाहरण –

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं
सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देख्याँ माहीं।।

उदाहरण –

ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन जड़ छांह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।।

उदाहरण –

कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।।

उदाहरण –

भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।

उदाहरण –

कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।
जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम वचन नेम निबहौंगो।

उदाहरण –

धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
नहिं तहं सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की।।

उदाहरण –

देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा

उदाहरण –

मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते
सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥

उदाहरण –

मन रे! परस हरि के चरण,
सुलभ सीतल कमल कोमल,
त्रिविधा ज्वाला हरण।

उदाहरण –

लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार

उदाहरण –

तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश
बताओ यह कैसा उद्वेग?

उदाहरण –

मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥

उदाहरण –

बैठे मारुति देखते राम चरणाबिंद।
युग अस्ति-नास्ति के एक रूप गुण गुण अनिंद्य।।

उदाहरण –

मन फूला फूला फिरै जगत में कैसा नाता रे।
चार बाँस चरगजी मँगाया चढ़े काठ की घोरी।
चारों कोने आग लगाया फूँकि दिया जस होरी।
हाड़ जरै जस लाकड़ी केस जरै जस घास।
सोना जैसी काया जरि गई, कोई न आए पास।।

उदाहरण –

अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागै फिरि न डसैहौं ॥
पायौ नाम चारु-चिन्तामनि, उर-करते न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, उर-कंचनहि कसैहौ ॥
परबस जानि हस्यौ इन इन्द्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं ।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैंहौं ।।

उदाहरण –

मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।
पाँच तत्त की बनी चुनरिया सोरहसै बंद लागे जिया।
यह चुनरी मोरे मैके ते आई ससुरे में मनुवाँ खोय दिया।
मलि मलि धोई दाग न छूटै ज्ञान को साबुन लाय पिया।
कहें कबीर दाग तब छुटि हैं जब साहब अपनाय लिया।

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FAQ-

शांत रस का आविष्कार किसने किया था?

शांत रस का आविष्कार वी. राघवन , एक संस्कृत विद्वान, शांतरस को नौवें रस के रूप में मान्यता देने का श्रेय आठवीं शताब्दी के अंत में कश्मीर के कवि उद्भट्ट को देते हैं

शांत रस का स्थायी भाव क्या है?

शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद है।

शांत रस के देवता कौन है?

शांत रस के देवता नारायण और उसका वर्ण कुंदेटु बताया जाता है। प्रथम आठ रसों के क्रमश: श्याम, सित, रक्त, कपोत, गौर, पीत, नील तथा कृष्ण वर्ण माने गए हैं।

निकर्ष-

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